रायपुर/ 12 मई 2020। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि गरीब, मजदूर पहले ही बदहाल और लाचार हैं, अब किराया, किस्त, ब्याज और टैक्स के बोझ से मध्यमवर्ग भी असहाय! राहत देने में कोताही बरते जाने से नीति और नीयत की हकीक़त सामने आने लगी है, कथनी और करनी में फर्क दिखने लगा है! आमजन में मोदी सरकार की विश्वसनीयता ख़त्म हो गई है!
डिजास्टर मैनजमेंट एक्ट के तहत सैंट्रेल गवर्मेंट की आर्थिक राहत के संदर्भ में कुछ विशेष जिम्मेदारियां बनती हैं! लॉक डॉउन के शुरुआत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, भारत सरकार ने कहा कि आपके लोन की किश्त तीन महीने के बाद भरना। वो समय भी अब खत्म होने को है, लेकिन कई बैंक इस दौरान भी किश्तों की राशि खातों से लगातार काटते रहे! अब कर्जदारों से तीन किश्तों के साथ अतिरिक्त ब्याज का बोझ भी लादने की तैयारी है! आयकर के तहत काटे जाने वाले टीडीएस की राशि को जमा करने के लिए भले ही अंतिम तिथि बढ़ाई गई है परंतु उस राशि पर 9% ब्याज भी लगाने का प्रावधान किया गया है जो सर्वथा अनुचित है! डिजास्टर मैनजमेंट एक्ट के सेक्शन 13 में प्रावधान है कि “नहीं, आप उसमें ब्याज भी नहीं ले सकते हैं, उसे साइड लाइन भी करो, इसका कनवर्जन कर दो और जरुरत है तो नहीं लो”। पर मोदी सरकार तीन माह के लिए केवल एक्सटेंशन की बात कह रही है। आज हमारे एमएसएमई हैं, छोटे-मोटे दुकानदार हैं, किसान हैं, ऐसे लोगों के लिए भारत सरकार को ब्याज और जुर्माने से राहत देने ठोस निर्णय करना पड़ेगा। यह अधिकार भारत सरकार को ही है! डिजास्टर मैनजमेंट एक्ट के प्रावधानों का पूरा पालन करना होगा, आपदा काल में मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती। जो रोज कमाने, रोज खाने वाले छोटे व्यवसाई, प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग, पान की दुकान चलाने वाला, जूता पॉलिश करने वालi या रिक्शा ठेला चलाने वाला, अब जब लॉक डॉउन में उनकी आय शून्य हो गई है तो क्या उनको भी इंस्टोलमेंट देना है? संविधान के अनुसार, ये भारत सरकार की जिम्मेवारी है I
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि अगर भारत सरकार कहती है कि उसके पास पैसे नहीं हैं, तो फिर आप विस्टा प्रोजेक्ट बंद कर देते, आप 20,000 करोड़ रुपए सौंदर्यीकरण करने में खर्च कर सकते हैं और एक गरीब की मदद करने के लिए राज्य सरकार को कहते हो कि केंद्र के पास पैसे नहीं हैं, तो क्या ये सही है? क्या यह नैतिक है? क्या यह न्याय है? क्या यही राजधर्म है? सवा लाख करोड़ से अधिक का बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट क्या वर्तमान परिस्थिति में आवश्यक है?
आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार लॉक डाउन लागू होते ही लगभग 12 करोड़ प्राइवेट नौकरियां तत्काल खत्म हो गई है! 14 करोड़ प्रवासी मजदूर संसाधन विहीन होकर हाईवे और रेलवे ट्रैकों पर दम तोड़ रहे हैं! हम हर रोज अलग-अलग टीवी चैनलों पर कई कई मजदूरों को बोलते सुन सकते हैं किउन्हें दो वक्त का खाना भी नहीं मिल रहा है सरकार से और सरकार के लोग बार-बार टीवी अखबारों पे कहते सुने जा रहे हैं कि हमारे पास अनाज का पूरा भंडार भरा पड़ा है! तो ऐसे भंडार किस काम के जो जरूरत पड़ने पर देशवासियों के काम ना आ सके? हमारा सवाल मोदी सरकार से बार-बार यही है कि देश के संसाधन विपदा के समय देशवासियों के काम नहीं आए तो किस काम का?
मोदी सरकार की नीति और नियत में खोट है! और यदि यह अव्यवस्था है, प्लानिंग में कमी है तो इसकी जिम्मेदारी लेने से मोदी सरकार क्यों भाग रही है? केंद्र जो कहे जो करे सब सही और उनकी अव्यवस्था पर सवाल उठाने वाले मजदूर, किसान, श्रमिक, मध्यमवर्ग और आमजन जो अव्यवस्था और आर्थिक निरक्षरता के शिकार हुए वो सब गलत, वो सब दोषी ? वाह मोदी जी वाह! पता नहीं देश किस शासन तंत्र की ओर आगे बढ़ रहा है? यदि अधिनायकवाद और हठधर्मिता छोड़ कर मोदी सरकार किराया, किश्त, ब्याज और कर में तत्काल राहत देने का फैसला नहीं लेती है तो अब देश का मध्यमवर्ग भी संसाधन विहीन हो जाएगा I