*अपने अस्तित्व को बचाने की मजबूरी में संघ ने महिलाओं का अस्तित्व को स्वीकारा*
*जिन हिन्दुओं ने संघ के आह्वान पर ज्यादा बच्चे पैदा किये क्या संघ उनसे माफी मांगेगा?*
*जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग संघ की नीयत में खोट*
रायपुर/06 अक्टूबर 2022। आरएसएस के द्वारा दशहरा उत्सव के मंच पर पहली बार महिला को स्थान दिये जाने और संघ प्रमुख द्वारा देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किये जाने की मांग पर कांग्रेस अनेक सवाल खड़ा किया। प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि आरएसएस ने अपनी स्थापना के 97 साल बाद दशहरा उत्सव के मंच पर पहली बार किसी महिला को स्थान दिया। जो काम पुरूष कर सकता है वह काम नारी भी कर सकती है इसे समझने में आरएसएस को पूरी सदी लग गयी। संघ खुद को हिन्दू धर्म और संस्कृति का ठेकेदार बताता हैं लेकिन इन्हें सनातन धर्म की इतनी भी समझ नहीं की बिना नारी के सहभागिता पुरुष का कोई अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो सकता। सीता माता की अनुपस्थिति में अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए भगवान राम को स्वर्ण सीता बनाना पड़ा था। जिस संगठन को देश की आधी आबादी को सम्मान देने में 97 साल लग गए वह देश के धर्म संस्कृति की रक्षा की बात करता है तो वह ढोंग लगता है। आरएसएस ढोंगी संगठन है यह बात महिलाओं के प्रति उसके नजरिये से साफ होती है।
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि महिलाओं की बढ़ती शक्ति से आरएसएस मजबूर हुआ है समाज में हर क्षेत्र में महिलायें अग्रणी है, महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लौह मनवाया राजनैतिक और सामाजिक रूप से महिलायें जागरूक हुई है। आरएसएस का महिलाओं के प्रति नजरिये में बदलाव राजनैतिक मजबूरी है, संघ जान गया है कि यदि उसने महिलाओं के प्रति अपने दकियानूसी रवैये में बदलाव नहीं किया तो उसका खुद का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। अपने अस्तित्व को बचाने की मजबूरी में संघ ने महिलाओं का अस्तित्व को स्वीकारने की शुरूआत किया है। संघ का यह प्रयास भी आधा अधूरा है उसने अपने संगठन में अभी तक महिलाओं के लिये रास्ता नहीं खोला है। संघ में भी महिलाओं की बराबर की भागीदारी होनी चाहिये।
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि आरएसएस प्रमुख का जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की मांग के पीछे मंशा क्या है यह स्पष्ट करें। कोई भी कानून देश की जरूरतों के आधार पर लागू होता है। आरएसएस के लोग पहले कहते थे ज्यादा बच्चे पैदा करो जो खुद शादी नहीं किये थे वह बच्चे पैदा करने का आह्वान करते थे अब जनसंख्या नियंत्रण का मांग से उनका विद्वेष झलक रहा। संघ के नेताओं के आह्वान पर जिन हिन्दुओं ने ज्यादा बच्चे पैदा कर लिये है क्या संघ उनसे माफी मांगेगा? देश के हिन्दू, आरएसएस से जानना चाहते है कि दशकों तक हिंदुओं को जनसंख्या बढ़ाने का आह्वान करने वाले लोग अचानक यू-टर्न क्यों ले लिये? विहिप के लोग घूम-घूमकर नारा देते थे *‘‘बच्चे बढ़ाओ दुनिया पर छाओ, छोटा पड़ेगा हिंदुस्तान खाली करा लेंगे पाकिस्तान’’* उनके नारों से प्रेरणा लेकर जो हिंदू अपना परिवार बढ़ा लिए है उनके लिये आरएसएस का अब क्या कहना है? पहले बच्चे बढ़ाने के लिए प्रेरित करना फिर इसके खिलाफ कानून बनाना क्या देश के हिंदुओं के साथ भाजपा का धोखा नहीं है?