रायपुर, 27 जुलाई 2020/ पीढ़ियों से वनभूमि का काबिज वनवासी परिवारों को व्यक्तिगत वनभूमि अधिकार मान्यता पट्टा मिल जाने से इन परिवारों की जिन्दगी में अब नया उजियारा आ गया है। वन भूमि पर कोदो-कुटकी की खेती और लघु वनोपज के जरिए जैसे-तैसे जिन्दगी बसर कर रहे वनवासियों की जिन्दगी अब पटरी पर धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगी है। वनभूमि से बेदखली से भय दूर हो गया है। वन अधिकार मान्यता पत्र मिल जाने से अब वह बेहतर खेती-किसानी करने के साथ ही आय की अन्य गतिविधियों को अपनाकर अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में बेहतर बनाने में जुट गए हैं। धमतरी जिले के सुदूर वनांचल के गांव कोलियारी (दुगली) के आदिवासी रामलाल गोंड़ को 1.793 हेक्टेयर वनभूमि का पट्टा मिलने से उनके परिवार के जीवन में नया सवेरा आ गया है। रामलाल अब धान की दोहरी फसल लेने के साथ ही सब्जी का उत्पादन और मछलीपालन कर बेहतर आमदनी अर्जित करने लगे हैं। उनके आगे बढ़ने का सिलसिला यहीं पर नहीं थमा, रामलाल ने खेत में तालाब बनवाकर उसमें मछलीपालन भी शुरू कर दिया, जो आज उनकी आय का एक मजबूत जरिया बन गया है। रामलाल सब्जी की खेती और मछलीपालन से हो रही आमदनी से उत्साहित होकर एक ट्रैक्टर भी खरीद लिया है। अब वह आधुनिक तकनीक से खेती करने लगे हैं। आर्थिक स्थिति बेहतर होने के बाद अब अपना नया पक्का घर भी बनवा रहे हैं।
धमतरी जिले के नगरी विकासखण्ड का कोलियारी (दुगली) एक छोटा सा गांव है, जो वन संपदा से सम्पन्न है। वन अधिकार के मान्यता पत्र मिलने से यहां के ग्रामीणों के जीवन में आशातीत बदलाव आया है। रामलाल गोंड़ ने बताया कि पहले वह जीविकोपार्जन हेतु मजदूरी व लघु वनोपज संग्रहण करते थे। रामलाल की प्रतिकूल परिस्थितियां 1.793 हेक्टेयर वनभूमि का पट्टा मिलने के बाद धीरे-धीरे बदलने लगी। हमर जंगल हमर आजीविका योजना के तहत खाली पड़ी अनुपयोगी भूमि का सुधार एवं समतलीकरण करने के पश्चात तथा बोर खनन कराकर दोहरी फसलों की पैदावार लेना आरंभ किया। इसके अलावा मौसमी सब्जियों की भी खेती शुरू की। उन्होंने नाबार्ड की सहायता से निजी तालाब बनवाकर उसमें मछलीपालन शुरू किया। इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है।