गोबर सहेज कर स्वावलंबन की उड़ान भर रहीं महिलाएं वर्मी कपोस्ट बना लाखों का कारोबार


रायपुर, ‘गौ के साथ-साथ गोबर को भी धन क्यों कहा जाता है‘, यह समझना हो तो सुराजी योजना के गोठानों में जाकर समझा जा सकता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की ग्रामीण विकास एवं अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की परिकल्पना को महिला स्व-सहायता समूहों ने साकार कर दिखाया है। जमीन से जुड़कर महिलाएं आज स्वावलंबन के खुले आकाश में उड़ान भर रही हैं। महिलाओं ने अपनी मेहनत से गोबर की उपयोगिता को एक बार फिर स्थापित कर दिया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गोबर से महिला समूह आज लाखों रुपए की आमदनी प्राप्त करने लगी हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य के अमूमन सभी जिलों के गौठानों में महिला समूहों द्वारा वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाया जा रहा है। कोरबा जिले में सुराजी गांव योजना के तहत निर्मित 74 गौठानों में इतनी ही महिला स्व सहायता समूहों ने अपनी मेहनत और हिकमत अमली से 1 हजार 115 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार किया है, जिसकी कीमत लगभग 11 लाख रुपए है। उच्च गुणवत्ता की वर्मी कंपोस्ट खाद हाथों-हाथ बिकने लगी है। अब तक महिला समूहों ने 915 क्विंटल खाद बेच कर लगभग 9 लाख रुपए की आमदनी हासिल कर ली है। 02 लाख रुपए मूल्य की खाद अभी बिकने के लिए तैयार है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थल सतरेंगा की हरी-भरी बगिया में खिले किस्म-किस्म के फूलों की रंगत और चारों ओर बिछी घास की चादर की हरियाली कंपोस्ट खाद की बदौलत है, जिसे महिला स्वसहायता समूहों द्वारा गांव के गोठानों में तैयार किया गया है। सतरेंगा में उद्यानिकी विभाग ने फल-फूल के पौधों के पोषण के लिए 60 क्विंटल कंपोस्ट खाद का उपयोग इस बगिया में किया है। विभाग ने 9 रुपए 60 पैसे प्रति किलो की दर से इसकी कीमत का सीधा भुगतान महिला समूहों को किया है। उद्यानिकी विभाग के अलावा अन्य शासकीय विभागों, जैसे कृषि, वन, रेशम आदि में भी कंपोस्ट खाद की खासी मांग है। खाद की गुणवत्ता को देखते हुए आम किसानों के बीच भी यह लोकप्रिय हो चुकी है। इसकी गुणवत्ता प्रमाणीकरण संस्था द्वारा प्रमाणित की गई है। पिछले उत्पादन की हाथों-हाथ बिक्री के बाद अब समूहों ने एक बार फिर खाली हो चुके वर्मी बेडों का भराव शुरु कर दिया है। जल्द ही उनके पास लगभग 400 क्विंटल और खाद तैयार हो जाएगी।    

पोंड़ीउपरोड़ा विकासखंड महोरा गांव में बने गोठान का संचालन करने वाले हरेकृष्णा स्व सहायता समूह की सदस्य कांतिदेवी कंवर कहती है कि हम कचरे, गोबर से खाद बनाते हैं। इसकी लागत न के बराबर है। यदि यह दस रुपए में बिक रही है, तो इससे अच्छा भला और क्या हो सकता है। गोबर के पैसे भी मिल जाते हैं और कचरे की सफाई भी हो जाती है। हमारी बनाई खाद किसान इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि इसकी गुणवत्ता अच्छी है और उनके खेत सुधर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *