मासूम मोहम्मद अफ़राज के ज़ज्बे को सलाम, माहे रमज़ान के रोज़े भी अफ़राज को नही डिगा सके

रायपुर, इल्म और संस्कार बच्चो में बचपन से आने लगते है, अमूमन यही देखने को मिलता है कि जिस घर मे ईबादत और ईस्वर की भक्ति में तल्लीनता होती है, उनके घरों में रहमत बरसती है, ख़ास कर बच्चो को इस्लामिक धर्म की शिक्षा का यह पहला कदम ही होता है, लोग अपने धर्म को जानते समझते है, ईस्वर क्या है पैगम्बर क्यू जमीन पर बशर बन कर आए, क्यू उन्होंने अपना सारा जीवन मनुष्य के कल्याण के लिए लगा लागए, जीवन को सादगी और प्रेम से जी कर उन्होंने एक मार्ग कायम किया जिस पर चल कर ही ईस्वर की हम कृपा पा सकते है। छोटे बच्चों में अदब और अपने से बड़े बुजुर्गों का एहतराम करना इस कोमल सी उम्र में ही आने लगते है, जीवन को कैसे दुसरो के पेरोकार में लगाए यही इस्लाम की सुरवती शिक्षा बच्चो को दी जाती है,
कुरआन और हदीसो के हवाले से उन्हें समझाया जाता है,
रायपुर निवासी मोहम्मद अफ़राज अपने घर से मिलने वाले सतमर्ग और अच्छे संस्कारो को समेटे पवित्र माह रमज़ान के रोजे रख कर बड़े बड़े रोजेदारों में शुमार हो गया, नन्ही सी जान और इस भीषण गर्मी में भूख प्यास की शिद्दत को भूल कर अब मोहम्मद अफ़राज अपने रब को मानने की कोशिश करता है, मोहम्मद अज़ीम आप नेता के लख्ते ज़िगर की इस कोशिश के सभी क़ायल होते जा रहे, छोटी सी उम्र में बड़ो बड़ो को दांतों तले उंगली दबाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा, मोहम्मद अफ़राज वक़्त पर शहरी और वक़्त पर रोजा अफ्तार करते है, ईस्वर से प्रर्थना है कि अफ़राज को हिम्मत और उनके परिवार वालो को सब्र की दौलत से मालामाल रखे,

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