बदरीनाथ धाम में मंदिर के कपाट आज प्रात: 4 बजकर 30 मिनट पर वेद मंत्रों की ध्वनि के साथ खोल दिए गए. इस दौरान सीमित संख्या में मंदिर के पुजारी और कर्मचारी मौजूद थे. कोरोना वायरस के चलते सीमित संख्या में लोग मौजूद थे. इससे पहले मंदिर व पूरे मंदिर परिसर को सैनिटाइज किया गया. कपाट खुलने से पूर्व गर्भ गृह से माता लक्ष्मी को लक्ष्मी मंदिर में स्थापित किया गया और कुबेर जी व उद्धव जी की चल विग्रह मूर्ति को गर्भ गृह में स्थापित किया गया.
आज सुबह सबसे पहले कपाट खुलते ही भगवान बद्री विशाल की मूर्ति से घृत कंबल को हटाया गया. कपाट बंद होते समय मूर्ति पर घी का लेप और माणा गांव की कुंवारी कन्याओं के द्वारा बनाई गई कंबल से भगवान को ढका जाता है और कपाट खुलने पर हटाया जाता है. इसके बाद मां लक्ष्मी बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह से बहार आईं जिसके बाद भगवान बद्रीनाथ जी के बड़े भाई उद्धव जी और कुबेर जी का बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश हुआ. इसी के साथ भगवान बद्रीनाथ के दर्शन शुरू हो गए.
बदरीनाथ में आस्था के साथ लोक मान्यताओं का भी निर्वहन होता है। कपाट बंद होने पर लक्ष्मी जी का जो विग्रह भगवान बदरी विशाल के सानिध्य में रखा जाता है। कपाट खुलने पर लक्ष्मी जी को बदरीनाथ मंदिर के निकट लक्ष्मी मंदिर में पहले लाया जाता है। तब उद्धव जी का विग्रह जो पांडुकेश्वर योग ध्यान मंदिर से लाया जाता है उन उद्वव जी को भगवान के सानिध्य में रखा जाता है। उद्धव श्री कृष्ण के सखा स्वरूप हैं पर उम्र में कृष्ण से बड़े हैं । इसलिये लोक परम्परा में वे लक्ष्मी जी के जेठ हुये। हिन्दू परम्परा में जेठ के सामने बहू नहीं आ सकतीं। इसलिये पहले लक्ष्मी जी लक्ष्मी मंदिर आएंगी और उसके बाद उद्धव जी भगवान के सानिध्य में विराजित होंगे। कपाट खुलने पर भगवान बदरी विशाल के सानिध्य में देवताओं के खंजाची धन कुबेर महाराज भी विराजेंगे। पांडुकेश्वर के कुबेर मंदिर से भगवान कुबेर की सुन्दर स्वर्ण प्रतिमा पालकी में सज कर आती है। इस तरह बदरीनाथ के कपाट खुलते ही यहां स्थित सभी मंदिरों में पूजा अर्चना शुरू हो जाती है ।