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रायपुर, आज की आधुनिक व रासायनिक खेती के दौर में बोनी के पूर्व खेती की तैयारी हेतु खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई की जानी चाहिए। इससे कीटों, रोगों तथा खरपतवारों के नियंत्रण होने के साथ-साथ खेत में नमी की मात्रा एवं उसकी उर्वरा शक्ति के साथ ही भौतिक दशा में भी सुधार होता है। कृषि के क्षेत्र में दिनों-दिन रसायनों का उपयोग, मशीनीकरण, आधुनिकीकरण आदि के कारण मृदा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, इसमें रासायनिक उर्वरकों कीटनाशक औषधियों का असंतुलित रूप में उपयोग प्रमुख है। इसी प्रकार बड़े-बड़े कृषि यंत्र का प्रयोग व अधिक जुताई, मताई आदि के कारण भी मिट्टी की भौतिक दशा प्रभावित हो जाती है। इस प्रकार के दुष्प्रभावों से मिट्टी की संरचना व अव्यवयों में बदलाव व कड़ापन हो जाने से पौधे के वृद्धि व विकास हेतु आवश्यक मृदा नमी एवं मृदा वायु के साथ ही पोषक तत्वों की उपलब्धता पर विपरीत असर पड़ता है। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई लाभकारी है। यह कम लागत, अधिक उत्पादन तकनीकी व समन्वित कीट व्याधि नियंत्रण का प्रमुख घटक है। इससे पौधों के अवशेष, ठूठ आदि में छूटे हुए कीड़े-मकोड़ों के अंडे लार्वा व विभिन्न प्रकार के फसलों के रोगाणु आदि के जीवन चक्र मई-जून माह के तेज धूप की गर्मी से आसानी से नष्ट हो जाते है। मिट्टी की भौतिक संरचना में भी व्यापक रूप से सुधार होता है। गोबर या कम्पोस्ट खाद डालने में आसानी होती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से खरपतवारों के बीज भी नष्ट हो जाते है। सामान्यतः ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई दो-तीन वर्ष के अंतराल में की जा सकती है।
फसलों की कटाई के बाद इनके अवशेष खेत में पड़े रह जाते हैं। जैसे ही हम मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करते हैं, तो फसल अवशेष मृदा में दब जाते हैं और विघटित होकर काले भूरे रंग का ह्यूमस बनाते हैं। जिससे मृदा की भौतिक सरंचना में सुधार होता है। कृषि फसलों को हानि पहुॅुचाने वाले कीड़ो के अण्डे़ लार्वा खेत की गहरी जुताई से जमीन के अंदर काफी गहराई में चले जाते है और हमेशा के लिये नष्ट हो जाते है।
गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करने से आगामी फसल को उचित नमी मिलती है। ऐसा देखा गया है कि खेतों में लगातार एक ही गहराई पर हल, बखर से खेत की जुताई, जल के अन्तः स्त्रावण में अवरोध पैदा करती है, परंतु गर्मी में गहरी जुताई करने यह कड़ी परत टूट जाती है, परिणामस्वरूप भूमिगत जल के स्तर में सुधार होता है। वायुमण्डल में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस होती है, जो विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं के वायुमण्डल में घटित होने के कारण यह गैस वर्षा के जल में घुल जाती है। यदि पहली वर्षा का जल खेत द्वारा पूर्ण रूप से सोख लिया जाता है तो खेत की मिट्टी उर्वरा शक्ति में सुधार होता है।
फसल काटने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से खेत गहरी जुताई करें। खेत की जुताई इस तरह करें कि खेत की मिट्टी भुरभुरी न होकर बड़े-बड़े ढ़ेलों के रूप में रहे ताकि गर्म हवा जमीन में अधिक गहराई तक जा सके। ढेलेदार खेत होने से वर्षा का पानी उसमें पूरी तरह शोषित हो जाता है। खेत के ढ़ाल की विपरित दिशा में जुताई करना चाहिए जिससे मृदा एवं जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है। खेतों में जहां पानी भरता हो वहां पर मिट्टी भराई का कार्य भी साथ-साथ करते रहना चाहिए। गहरी जुताई के समय खेत के चारों ओर मेड़ बनाना भी लाभप्रद होता है क्योंकि इससे वर्षा का जल खेत मेें ही एकत्रित होने से मिट्टी द्वारा सोख लिया जाता है तथा मिट्टी के पोषक तत्वों का अनावश्यक रूप से होने वाला बहाव भी रूक जाता है।