करोना आपदा काल में राहत की जगह ऋण का व्यापार
राहत की उम्मीद लगाए देशवासियों को मिला कर्ज का कुचक्र
पूंजीपतियों के दबाव में श्रम कानूनों में श्रमिक विरोधी बदलाव अस्वीकार्य
रायपुर/14 मई 2020। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि मोदी सरकार करोना आपदा के समय गरीबों की मददगार की नहीं साहूकार की भूमिका में है। निरीह जनता को उम्मीद थी राहत की, पर मोदी जी ने तो जनता के लिए केवल कर्ज का कुचक्र ही रचा है! गरीब, किसान, प्रवासी मजदूर, छोटे और मध्यम व्यवसायी और निजी क्षेत्रों में काम करने वाले लोग जो नौकरियां जाने से सड़क पर आ गए हैं, आय का ठिकाना नहीं मोदी जी के कर्ज से उन्हें कोई राहत कैसे मिल पाएगी? व्यवसाई और उद्योगपति के लिए निर्मला सीतारमण जी के द्वारा जारी लोन की उपयोगिता तभी तो होगी ना, जब उनका व्यापार बढ़े, टर्नओवर बढ़े, आमजन की क्रयक्षमता बढ़ाए बिना व्यापार उद्योग को लोन सहायता देने की उपयोगिता क्या है? निर्मला सीतारमण जी ने कल अपने वक्तव्य में यह तथ्य बताया था, कि हमारे पास बहुत सी ऐसी जानकारियां आई है कि एम एस एम ई के अंतर्गत आने वाले बहुत सारे व्यवसाई ऐसे हैं जिनका लोन बैंकों में सैंक्शन हुआ पड़ा है लेकिन वे बाजार की अस्थिरता से डर के मारे लोन की राशि उठाने से साफ मना कर रहे हैं! जब वित्तमंत्री को यह हकीकत पता है फिर राहत के नाम पर लोन सहायता का अव्यावहारिक कदम क्यों?
नाबार्ड को एमएसपी पर खरीदी के लिए जारी वर्किंग कैपिटल किसानों को राहत कैसे? जो किसान पहले ही आपकी गलत नीतियों से बदहाल अवस्था में आत्महत्या करने मजबूर हैं क्यों मोदी सरकार उनको कर्जमाफी की राहत नहीं दे रही हैं? किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है, तो 2014 लोकसभा चुनावों के घोषणापत्र के अनुरूप स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करने पर बात क्यों नहीं? मोदी जी ने संसद में यूपीए सरकार का उपहास करते हुए कथन किया था कि मनरेगा कांग्रेस सरकार की असफलता का स्मारक है, आज यही मनरेगा और खाद्य सुरक्षा अधिनियम हिंदुस्तान की बहुसंख्यक आबादी के जीवन का आधार है! मोदी सरकार की वित्त मंत्री आज यह आंकड़े दे रही हैं कि विपरीत हालात में कोरोना लॉक डॉउन के दौरान 40% से 50% मनरेगा के रजिस्ट्रेशन में वृद्धि हुई है! नोट बदलने के लिए आप 30 दिन का समय देते हैं, पैन आधार लिंक के लिए आप लिमिटेड समय देते हैं, पर पीडीएस के नेशनल पोर्टेबिलिटी सुविधा के शेष बचे 17% लोगों के पंजीयन के लिए आपको मार्च 2021 तक का समय चाहिए! प्रवासी मजदूर जो करोड़ों की संख्या में पूरे देश के हाईवे में नजर आ रहे हैं उनमें से कितने भूख से मरे, कितने थकान से, उसका आंकड़ा आपके पास नहीं है और ना ही तत्काल राहत पर आप कोई बात करते हैं! उनके लिए कम किराए पर मकान बनाने के लिए योजना बताए जा रहे हैं, वह भी 2022 तक! रेहडी वाले, पटरी पर ठेला लगाने वाले, घरेलू नौकर और श्रमिकों के लिए विशेष सुविधा के नाम पर 10000 रुपए का कर्ज़! जिनको परिवार पालने की चिंता है, आय और काम का ठिकाना नहीं, अनाज और दवा जुटाने संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें डिजिटल पेमेंट पर इनाम की बात करते हैं, वाह मोदी जी वाह!
ब्याज में सब्सिडी के नाम पर केवल शिशुमुद्रा लोन जो मात्र ₹50000 से अंदर के हैं, इनको ब्याज में 2% की छूट नाखून कटवाकर शहीदों में नाम दर्ज कराने वाली नौटंकी से अधिक कुछ भी नहीं है! डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा 13 के तहत केंद्र सरकार का यह दायित्व है कि ना केवल आपदा काल में लोन का रिपेमेंट एक्सटेंड किया जाए, बल्कि ब्याज भी माफ किया जाना चाहिए! आप अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं मोदी जी!
श्रमिक कानूनों में बड़े पैमाने पर परिवर्तन किया जा रहा है पूंजीपतियों के दबाव में श्रमिकों के शोषण का षड्यंत्र रचा जा रहा है! भाजपा शासित राज्यों में चुपचाप काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए गए! कार्यस्थल पर स्वच्छता के मापदंड हटा लिए गए, शौचालय तक की सुविधा की अनिवार्यता भी हटा दी गई! कारखाना अधिनियम के प्रावधानों में परिवर्तन बिना सदन में बहस और ट्रेड यूनियनों की सहमति के निंदनीय है! निजी क्षेत्रों में पीएफ की कटौती 12-12% परसेंट से घटाकर 10-10% परसेंट किया जाना कामगारों को दिया जाने वाला राहत है या सजा? यदि कर्मचारी का 2 परसेंट कम काटा जाएगा तो नियोजक भी दो पर्सेंट उसके पीएफ खाते में कम जमा करेगा जिसका सीधा नुकसान कर्मचारी को ही है!
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि मोदी सरकार का आपदा राहत के नाम पर घोषित पैकेज पूरी तरह से आर्थिक निरक्षरता, असंवेदनशीलता और पूंजीवादी विचारधारा का जीताजागता सबूत है। गरीब कामगार किसान मजदूर बेरोजगार मध्यमवर्ग और व्यवसाई विरोधी मोदी सरकार यह बताने में नाकाम रही कि लोगों की क्रय शक्ति कैसे बढ़ाई जाए कैसे सीधे तौर पर आमजन की मदद की जाए सही कहा था मोदी जी आपने कि आपके खून में व्यापार है। मोदी सरकार केवल अर्थव्यवस्था में ऋण की मात्रा बढ़ाकर उसे राहत का नाम देना चाहते हैं । मजबूर लोगों को भी केवल कर्ज के कुचक्र में फंसा कर रखना चाहते हैं।