रायपुर, छत्तीसगढ़ राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एस.सी.ई.आर.टी.) द्वारा 6 मई को दोपहर 2 बजे से एक लघु संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि संगोष्ठी में समुदाय के ऐसे सक्रिय सदस्य जिनके पास इस दिशा में कोई नवाचारी आइडिया उपलब्ध हो, वे भी इसमें शामिल होकर अपने आलेख भेज सकते हैं या ई-मेल से cgshalashagun@gmail.com में भी अपनी योजना भेजकर अवगत करा सकते हैं। आयोजकों द्वारा गोष्ठी में शामिल होने वाले बुद्धिजीवियों से अनुरोध किया गया है, कि कोरोना की वर्तमान परिस्थितियों और राज्य के विभिन्न अंचलों में अध्ययन कर रहे बच्चों को ध्यान में रखते हुए अपनी सक्रिय सहभागिता देने हेतु इस सन्दर्भ में अपनी विभिन्न वैकल्पिक योजनाओं को दस्तावेजीकृत कर साथ में लाएं।
कोरोना महामारी से बचाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ में भी स्कूलों को बंद कर दिया गया है। बच्चों की पढाई की वैकल्पिक व्यवस्था हेतु राज्य शासन द्वारा “पढई तुंहर दुआर” नामक कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में शिक्षक एवं विद्यार्थी जुड़ रहे हैं। राज्य में कुछ क्षेत्र नेटवर्क विहीन है और एक बड़ी संख्या में पालकों के पास मोबाइल अथवा स्मार्टफोन नहीं है। ऐसी स्थिति में राज्य स्तर से संचालित ऐसे आईसीटी समर्थित कार्यक्रम सुविधावंचित बच्चों तक पहुंचाने में कठिनाई हो रही है। ऐसी स्थिति में राज्य में समतामूलक शिक्षा सुलभ कराने जाने हेतु ऐसे सुविधावंचित क्षेत्रों में भी शिक्षा की वैकल्पिक व्यवस्थाएं की जानी होगी। इसे दृष्टिगत रखते हुए स्कूल शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों ने बताया कि इसके लिए अभी से कुछ नवाचारी पद्धतियों को खोजकर, विकसित कर उनके क्रियान्वयन के लिए तैयारी करनी होगी। नए प्रस्तावों को डिजाइन करते समय वर्तमान में उपलब्ध संसाधन, सुरक्षात्मक उपाय, बेहतर आउटपुट एवं मापदंड के भीतर विभिन्न घटकों के चयन को प्राथमिकता देनी होगी। नए प्रस्तावित मॉडल में वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों, समुदाय, सेवानिवृत्त शिक्षकों, स्थानीय समुदाय से इच्छुक व्यक्तियों के सहयोग से ऐसी प्रणालियाँ विकसित करनी होगी, जिससे बच्चों को शिक्षा लेने में स्वयं से रूचि विकसित हो। उन्हें बंधे-बंधाए प्रक्रियाओं से दूर रखकर सीखने हेतु पूरी स्वतंत्रता दी जाए और उन्हें स्थानीय परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उचित शिक्षा की व्यवस्था की जा सके। राज्य में ऐसे मॉडल विकसित करते समय बहुत से पूर्व में संचालित और सफल मॉडल को ध्यान में रख सकते हैं चाहे वह गीजूभाई का सीखने का अवसर हो, मेग्नेट स्कूल, नीलबाग का स्कूल हो, ऋषि वेली का स्कूल, प्रोफेसर खेडा का बैगा बच्चों के लिए संचालित स्कूल, कोंडागांव का इमली महुआ स्कूल, श्री सैनी द्वारा संचालित वनवासी आश्रम स्कूल से लेकर जापान के तोत्तोचान का तोमोए स्कूल आदि ऐसे सफल मॉडलों से सीख लेकर राज्य की परिस्थितियों और आवश्यकताओं एवं भविष्य को ध्यान में रखकर ठोस योजना वार्षिक कार्ययोजना में प्रस्तावित करनी होगी।