रायपुर :रायपुर जिले में आगामी खरीफ फसल को दृष्टिगत रखते हुए रासायनिक उर्वरक 69 हजार 2 सौ मि. टन के लक्ष्य के विरूध्द 45 हजार 6 सौ मि. टन का भंडारण किया जा चुका है । यूरिया 18 हजार मि. टन, डी.ए.पी. 14 हजार 8 सौ मि.टन , पोटाश 2 हजार 2 सौ मि.टन, सिंगल सुपर फास्फेट 3 हजार 3 सौ मि.टन, एन.पी.के 6 हजार 8 सौ मि.टन का भण्डारण किया गया है। इसमें से 2847 मिट्रिक टन का वितरण किया जा चुका है। यूरिया प्रति बोरी 266 रूपये, डीएपी 1175 रूपये, पोटाश 919, सिंगल सुपर फास्फेट 340, सिंग सुपर फास्फेट दानेवार 270 रूपयें, सिंगल सुपर फास्फेट जिंककोेटेड 355, एन.पी.के. 1150, दर पर उपलब्ध है।
उप संचालक कृषि श्री आर एल खरे ने बताया कि जिले में रसायनिक खाद एवं उर्वरक के संतुलित उपयोग पर बल दिया जा रहा है और किसानों को जैविक तथा गोबर खाद के उपयोग करने पर बल दिया जा रहा है । किसानों से मिट्टी की गुणवत्ता के अनुरूप फसल लेने की अपील की गई है ।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान खेती के दौर में उर्वरक, कीटनाशी, औषधियों के असंतुलित उपयोग के दुष्पभाव से खाद्यान्न उत्पादन व जनसंख्या में वृध्दि का आनुपातिक संतुलन बनाये रखना एक चुनौती बन गया है। खाद्यानों की सुरक्षित व गुणवत्ता युक्त उत्पादन में प्रथम आवश्यकता निःसंदेह मिट्टी के प्रकार, संरचना व उनमें पाये जाने वाले पोषक तत्वों की उपलब्धता पर निर्भर रहता हैं।
पारंपरिक रूप से अन्नदाता किसान धरती मां की पूजा-अर्चना से कृषि कार्य प्रारम्भ करने पर आस्था रखता है किंतु आज फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के व्यावसायिक दृष्टिकोण से भूमि का अधिकाधिक दोहन करने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनों का असंतुलित ढंग से उपयोग किया जा रहा है। इससे खेतों की मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। एक ग्राम मिट्टी में करोड़ों की संख्या में जीवाणु विद्यमान होते है। इन जीवाणुओं के सहयोग से ही पौधों का वृध्दि एवं विकास संभव हो पाता है परतु इनकी संख्या में भी दिनों-दिन कमी होती जा रही है।
पौधों के वृध्दि एवं विकास हेतु कुल 16 तत्व आवश्यक होते है, इनमें तीन प्राथमिकता तत्व कार्बन, हाईड्रोजन व आक्सीजन तीन मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन, स्फुर, पोटाश है एवं तीन गौण तत्व कैल्शियम, मैग्निशियम व सल्फर है अन्य सात सूक्ष्म तत्व लोहा, जस्ता, कापर, बोरान, मैगनीज़, कोबाल्ट, निकल है जो पौधों के लिए अनिवार्य हैै। यहां यह बात उल्लेखनीय है इन पोषक तत्वों की आवश्यकता कम ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है किंतु इन सभी तत्वों का पौधों के वृध्दि एवं विकास के लिए बराबर अहमियत है।
यह निर्विवाद सत्य है कि जब भूमि में किसी तत्व की कमी हो जाती है तो ऐसी स्थिति में उस तत्व की पूर्ति किये बिना निश्चित उपज प्राप्त करना असंभव हो जाता है।
अतः विभिन्न प्रकार की मिट्टी में ली जाने वाली फसलों हेतु आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों की जानकारी मिट्टी परीक्षण के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जिस प्रकार मलेरिया जैसे संक्रामक रोग से उपचार हेतु खून की जांच कराई जाती है। उसी प्रकार धान की फसल में खैरा नामक रोग जिंक तत्व की कमी से होती है। इसकी जानकारी मिटटी परीक्षण के आधार पर ही हो सकता है।
मिटटी की अम्लीयता एवं क्षरियता पी.एच से मापी जाती है। मिट्टी का पी.एच. मान 7 से कम होने पर अम्लीय माना जाता है । सामान्यत अम्लीय भूमि में चूना का उपयोग 2-2.5 टन प्रति हेक्टयर तक अथवा मानक गणना दर अनुसार चाहिए तथा मिटटी का पी.एच. मान 7 से अधिक होने पर क्षारीय माना जाता हैै। सामान्यत क्षारीय मिटटीयों में जिप्सम 2.5 क्विटल प्रति हे. अथवा मानक गणना दर अनुसार उपयोग करना लाभप्रद होता है।
इसी प्रकार अन्य पोषक तत्व जैसे नत्रजन, स्फुर, व पोटाश की मिटटी में उपलब्ध मात्रा ज्ञात कर बोयी जाने वाली फसलों के अनुसार खाद व उर्वरकों की संतुलित मात्रा में अनुशंसानुसार उपयोग करना चाहिए। संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग मृदा स्वास्थ्य कार्ड में दिये गये अनुशंसानुसार करना चाहिए।
सामान्यतः मिटटी का परीक्षण का परिणाम तत्वों की उपलब्धता अतिअल्प, कम माध्यम व उच्च में दिया जाता है। तत्व की उपलब्धता का परिणाम अतिअल्प होने की स्थिति में फसलों के लिए उर्वरक की अनुशंसित मात्रा में डेढ़ गुणा उपयोग किया जाना चाहिए। तत्व की उपलब्धता कम होने की स्थिति में फसलों के लिए उर्वरक की अनुशंसित मात्रा से सवा गुना उपयोग किया जाना चाहिए। मध्यम होने की स्थिति में अनुशंसित मात्रा के बराबर व उच्च होने की स्थिति में अनुशंसित मात्रा में आधा उपयोग किया जाना चाहिए।
किसान भाइयों से अनुरोध है कि उर्वरक से संबंधित विक्रय केन्द्रों को सुबह 9 बजे शाम 5 बजे तक खुले रहने हेतु छूट प्रदान की गई है।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए क्षेत्रीय कृषि अधिकारी अथवा किसान हेल्प लाईन टोल फ्री 18002331580 जिला रायपुर से संपर्क किया जा सकता है।