रायपुर, छत्तीसगढ़ शासन के पशुधन विभाग द्वारा राज्य में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दोहरी कार्ययोजना पर तेजी से अमल शुरू कर दिया गया है। इसके लिए देशी नस्ल के गौवंशीय एवं भैसवंशीय नर पशुओं (बछड़ों) के बधियाकरण के साथ-साथ मादा पशुओं (बछिया) में कृत्रिम गर्भाधान का विशेष अभियान संचालित किया जा रहा है। राज्य में एक विशेष प्रोजेक्ट के तहत सभी जिलों के चिन्हित 300-300 गांवों में कृत्रिम गर्भाधान का विशेष कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य राज्य में पशुधन की नस्ल सुधारकर दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देना तथा पशुपालक किसानों की माली हालत में सुधार लाना है।
राज्य में इस साल पशुधन विकास विभाग द्वारा तीन लाख 50 हजार देशी नस्ल के नर पशुओं (बछड़ों) का बधियाकरण तथा 10 लाख मादा पशुओं (गौवंशीय एवं भैसवंशीय बछिया) का कृत्रिम गर्भाधान का लक्ष्य निर्धारित कर मैदानी अमले के माध्यम से इसको मूर्त रूप देने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। पशुधन विकास विभाग के पशु नस्ल सुधार और दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के कार्यक्रम के प्रभावी क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ शासन की सुराजी ग्राम योजना के अंतर्गत गांव में निर्मित गौठान मददगार साबित हो रहे हैं। गांव के गौठान में रोजाना बड़ी संख्या में आने वाले पशुओं की देखभाल के साथ ही उनके स्वास्थ्य परीक्षण, टीकाकरण, बधियाकरण एवं कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया को सहजता से पूरा करने में मदद मिल रही है।
पशुधन विकास विभाग के संयुक्त संचालक ने बताया कि पशु नस्ल के सुधार के लिए बधियाकरण के साथ-साथ कृत्रिम गर्भाधान जरूरी है, ताकि उन्नत नस्ल के पशुधन की उत्पादकता को बढ़ावा मिल सके। उन्होंने बताया कि इससे एक ओर जहां खेती-किसानी एवं बैलगाड़ी के लिए सक्षम नर पशु की उपलब्धता सुनिश्चित होती है, वहीं दूसरी ओर उन्नत नस्ल की बछिया से दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने बताया कि बछड़ों का बधियाकरण दो से 8 माह की आयु में किया जाता है। इससे कमजोर नस्ल के पशुओं की वंश वृद्धि को रोकने में मदद मिलती है। देशी मादा पशुओं को गर्भित करने हेतु उच्च आनुवांशिक क्षमता एवं उत्पादकता वाले नर पशु के फ्रोजन सीमन का प्रयोग कर उत्तम नस्ल के बछिया की प्राप्ति से दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने बताया कि पशुओं के बधियाकरण एवं कृत्रिम गर्भाधान के लाभ के बारे में राज्य के पशु पालकों में जागरूकता बढ़ी है। पशु पालक अब निकृष्ट नस्ल के बछड़ों का बधियाकरण करवाने के साथ ही देशी नस्ल की गायों में कृत्रिम गर्भाधान करवाकर उन्नत नस्ल के पशुधन को बढ़ावा देने में सहयोग देने लगे हैं। इसका लाभ भी पशु पालकों को अधिक दुग्ध उत्पादन के रूप में मिलने लगा है।