रांची(गौतम चौधरी) : झारखंड में अब गठबंधन की सरकार है और उसका नेतृत्व झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ट नेता संगठन के संस्थापक खुद शीबू सोरोन के पुत्र हेमंत सोरेन संभाल रहे हैं। हेमंत सोरेन ने चुनाव के समय लंबे-लंबे वादे किए थे लेकिन सरकार बन जाने के बाद झारखंड की जनता हेमंत सरकार से उब चुकी है, यह कहना जायज तो नहीं होगा लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को याद जरूर करने लगी है। खासकर कोरोना महामारी के इस भयंकर दौर में राज्य में जो कुछ भी देखने को मिल रहा है उसमें बड़ी भूमिका रघुवर दास के नेतृत्व वाली सरकार की है और यही कारण है कि रघुवर दास एक बार फिर प्रदेश की जनता के दिल और दिमाग पर हावी होने लगे हैं। हालांकि चुनाव के समय में केवल विरोधी पार्टी के लोग ही नहीं आम जनता का एक बड़ा तबका रघुवर दास को गैर राजनीतिक व्यक्ति के रूप में घोषित कर दिया था। यहां तक कि भाजपा के कार्यकर्ता और दबी जुवान कई नेता भी रघुवार दास की आलोचना करते नहीं थकते थे लेकिन कुछ ही महीने में चित्र बदलता दिख रहा है। मसलन, लोगों को रघुवार दास की याद सताने लगी है।
रांची के वरिष्ट पत्रकार कौशलेन्द्र कौशल कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि हेमंत सोरेन की सरकार से लोगों का मोहभंग हो गया है। हेमंत सोरेन भी अपने ढंग से बढ़िया ही कर रहे हैं लेकिन प्रशासकों से काम करने की क्षमता और प्रशासनिक कुशलता जो रघुवर दास में दिखती थी वह फिलहाल हेमंत सोरेन में देखने को नहीं मिल रही है। कौशल कई उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की मौत होती है लेकिन कई घंटों तक सरकार यह तय नहीं कर पाती है कि आखिर उसको कहां दफन किया जाए। यदि रघुवर दास के समय ऐसा हुआ होता तो वे इस पर त्वरित निर्णय लेते। भाजपा या रघुवर दास को अल्पसंख्यक विरोधी करार दिया जाता है लेकिन आज जो आप हज हाऊस देख रहे हैं वह तो रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व काल की ही देन है। आप सड़क देखिए, प्रशासनिक भवन देखिए, विधानसभा देखिए, उच्च न्यायालय देखिए, विवाद तो हुआ लेकिन जिस कुशलता के साथ उन्होंने इसका निर्माण कराया उसकी तारीफ हो रही है। हालांकि हेमंत की सरकार अभी हाल की है और केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है इसलिए तुलना करना उचित नहीं होगा लेकिन आम लोगों के बीच रघुवर दास की कुशलता की तुलना हेमंत से होने लगी है और होना स्वाभाविक भी है। हालांकि हेमंत सोरेन को वक्त दिया जाना चाहिए। कोरोना आपदा में उन्होंने भी बेहतर करने की कोशिश की है, जो तारीफ के योग्य है।
इस मामले में रघुवार दास के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके मीडिया सलाहकार रहे अजय कुमार ने बताया कि रघुवर दास के नेतृत्व वाली झारखंड की पूर्ववर्ती भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 108 एंबुलेंस सेवा प्रारंभ की थी। आज हेमंत सोरेन उसी सेवा का उपयोग कर गांव-गांव तक मेडिकल सुविधा पहुंचाने में सफल हो रहे हैं। हालांकि प्रतिपक्ष में रहते उन्होंने इसका जबरदस्त विरोध किया था, आज वही सेवा काम आ रही है। इस सेवा के तहत आपातकालीन स्थिति में बीमारों को मुफ्त में अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था है। एंबुलेंस में प्रथम चरण के इलाज की भी व्यवस्था होती है। इस सेवा में पूरे राज्य में 329 एंबुलेंस रखे गए थे। अजय बताते हैं कि जब रघुवर दास सत्ता में आए थे तो 2014 में पूरे प्रदेश में मात्र 12 जिला अस्पताल थे और ब्लड बैंकों की संख्या 18 थी। रघुवर दास ने जब सत्ता छोड़ी तो 2019 में जिला अस्पतालों की संख्या बढ़ कर 23 हो गयी और ब्लड बैंकों की संख्या 26 हो गयी। रिम्स में ड्रामा सेंटर का निर्माण भी रघुवर दास की सरकार ने ही करवाई थी, जहां आज कोरोना के मरीजों का इलाज हो रहा है।
मुख्यमंत्री दाल-भात योजना की भी शुरुआत रघुवर दास के नेतृत्व वाली सरकार ने ही करवाई थी। आज कोरोना आपदा के दौरान हेमंत सोरेन उसी दाल-भात योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को सुरक्षित भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। मुख्यमंत्री कैंटिन योजना की शुरुआत भी रघुवर दास की सरकार ने ही की थी, जिसे बदल कर दीदी किचेन किया गया है। दीदी किचेन जीवन रेखा बन कर उभरी है। पहले राज्य में मात्र 3 मेडिकल कॉलेज थे। रघुवर दास ने 7 मेडिकल कॉलेजों की स्थापना कराई, जिसमें से 3 में इलाज शुरू करवा कर वे खुद गए। यही नहीं भारत सरकार को कह कर उन्होंने प्रदेश में देवघर में एक एम्स की स्थापना करवाई।
रघुवर दास की सरकार ने मुख्यमंत्री कृषि आर्शीवाद योजना चला कर 17 लाख किसानों को सीधा आर्थिक मदद पहुंचाया। यह योजना अभी हाल ही में हेमंत के नेतृत्व वाली सरकार ने बंद करवा दी। अगर यह योजना चलती रहती तो लॉकडाउन के दौरान किसानों को जो परेशानी हो रही है वह नहीं होती। अजय बताते हैं कि सखी मंडल से 2014 में 2.3 लाख महिलाएं जुड़ी थी, रघुवर दास की सरकार ने 26 लाख महिलाओं को इससे जोड़ा। 171957 विधवा महिलाओं को पेंशन से जोड़ा। आयुषमान योजना के तहत 83.4 लाख परिवारों को जोड़ा गया। उज्जवला योजना से 33 लाख परिवारों को जोड़ा गया जिसमें जुल्हे के साथ दो सिलेंडर मुफ्त दिए गए। यह योजना आज कोरोना आपदा में वरदान साबित हो रहा है। अजय बताते हैं कि जिस अरविन्द मिल्स के रांची प्लांट में दस लाख पीपीई किट और बीस लाख मास्क बन रहा है, उस प्लांट की स्थापना भी रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुई थी। अभी उपर जिस सखी मंडल की चर्चा की है उस सखी मंडल से जुड़ी महिलायें पूरे राज्य में थ्री लेयर मास्क और सेनेटाइजर बनाने का काम बड़ी तेजी से कर रही हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सखी मंडल अब तक 5.5 लाख मास्क और 2.5 लाख सेनेटाईजर पूरे राज्य में बना चुकी है।
हालांकि फिलहाल हेमंत सोरेन की तुलना रघुवर दास से करना जल्दबाजी होगी लेकिन जब जनता को कुछ बढ़िया मिल रहा होता है और उसके बाद तुरंत व्यवस्था खराब होने लगती है तो जनता खुद तुलना करने लगती है। कई स्थानों पर ऐसा नहीं होता है। जैसे-बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार बिना कुछ विकास का काम किए कई वर्षों तक अपराजेय रही। यह भी एक बड़ा प्रयोग था लेकिन अब वह दौर समाप्त हो चुका है। सामान्य जनता विकास को तरजीह देने लगी है। हेमंत सोरेन के द्वारा कुछ ऐसे निर्णय लिए गए हैं जो किसी न किसी रूप में एक खास समूह को तुष्ट करने वाला रहा है। जैसे-अभी हाल ही में लोहरदगा के कुछ पुलिस अधिकारियों का तबादला किया गया।
प्रतिपक्षी भाजपा का दावा है कि उन अधिकारियों ने रोहिंग्याओं का पर्दाफास किया था। हालांकि यह जांच का विषय है लेकिन जिस प्रकार से हेमंत सरकार ने त्वरित निर्णय लेते हुए उन अधिकारियों का तबादला किया उससे सवाल खड़े हो रहे हैं। इससे पुलिस का मनोबल घटेगा और पुलिस अपराध एवं राज्य में मुंह बाए खड़ी माओवादी चरमपंथी आन्दोलन के प्रति उदासीन हो जाएगी। इससे घाटा सत्ता और समाज दोनों को होगा। यही नहीं हेमंत सरकार ने सत्ता संभालते पत्थलगड़ी आन्दोलन को ढ़ील देनी शुरू कर दी है। खुफिया रिपोर्ट यह बताता है कि पत्थगड़ी आन्दोलन पूर्ण रूपेण समाज एवं देश विरोधी तत्वों के हाथ में है। ऐसे में इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों पर प्रदेश सरकार को दलगत राजनीतिक हित से उपर उठकर काम करना चाहिए। यदि एक बार फिर से प्रदेश में माओवादी चरमपंथी सिर उठाते हैं तो उससे घाटा केवल भाजपा को ही नहीं होगा, हेमंत की पार्टी के नेताओं को भी होगा। सरकार को होगी और बनी बनाई व्यवस्था चरमरा जाएगी। पूर्व में ऐसा देखने को मिला है। कांग्रेस के कई नेता माओवादी आन्दोलन की भेंट चढ़ चुके हैं। इन्हीं सब कारणों ने प्रदेश की जनता को एक बार फिर से रघुवर दास की याद दिला रही है।