रायपुर, प्राकृतिक मोती के उत्पादन के लिए अब जल्द ही छत्तीसगढ़ को नयी पहचान मिलेगी। बस्तर और जांजगीर जिले में मत्स्य विभाग द्वारा मोती पालन की पहल की गई है। राष्ट्रीय कृषि मेला में ‘मृदु जलीय मोती पालन‘ का स्टाल लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था।
मोती पालन किसानों के लिए आर्थिक रूप से बेहद लाभकारी है। इसमें प्रति सीपी लागत लगभग 20 रूपए आती है और एक हजार सीपीयों के पालन द्वारा किसान 15 महीने में एक लाख 50 हजार रूपए की आय अर्जित कर सकते हैं।
मोती पालन के प्रक्रिया में एक स्वस्थ सीपी में कैल्सियम कार्बाेनेट प्रवेश कराकर सीपी को 15 से 18 महीने तक जल में रखा जाता है। इस दौरान सीपी में एपीथिलियल कोशिकाएं कैल्सियम कार्बाेनेट की परत स्रावित करती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप मोती की रचना होती है।
मत्स्य निरीक्षक श्री विजय निराला ने बताया कि यहां लगाये गये स्टाल में किसानों को सीपी से मोती उत्पादन का वैज्ञानिक तरीका आसान रूप में समझाया जा रहा है। जांजगीर-चांपा जिले में विभाग के तालाब में एक हजार सीपीयों में मोती पालन किया जा रहा है। जिसकी पहली फसल आने वाले राज्योत्सव तक आ जाएगी। साथ ही बस्तर में भी महिला स्व-सहायता समूह द्वारा मोती पालन किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी अंचल बस्तर के ग्राम पंचायत भाटपाल के बड़ेपारा जिला जगदलपुर में श्रीमती मोनिका श्रीधर के मार्गदर्शन में जय माँ संतोषी महिला समूह के द्वारा आबंटन में प्राप्त तालाब में विगत 2 वर्षों से मोती का पालन एवं उत्पादन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि भारत में मीठेपानी में मोती उत्पादन के लिए जिस प्रजाति की सीपीयों का प्रयोग किया जाता है, वे छत्तीसगढ़ के तालाबों और नदियों में बहुतायत में पायी जाती है। स्टॉल में बाजार मांग को ध्यान में रखते हुए किसानों को प्राकृतिक मोती के साथ-साथ नेकलेस में उपयोग आने वाले गोल मोती और डिजाइनर मोती के निर्माण की विधि भी बताई जा रही है। उल्लेखनीय है कि मोती में औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं। मोती उत्पादन के पश्चात लैब टेस्टिंग द्वारा गुणवत्तापरख के बाद किसान मोती को आभूषण बाजार के साथ ही फार्मेसी सेक्टर में भी विक्रय कर सकते हैं।