रायपुर :आस्था एवं परम्परा के अनुठे संगम के साथ कोण्डागांव का वार्षिक मेला सम्पन्न हो गया। कोण्डागांव के वार्षिक मेले में धार्मिक आयोजन के साथ-साथ लोक संस्कृति का अनूठा मेलमिलाप देखने को मिलता है क्योंकि मड़ई यहां मात्र मनोरंजन का आयोजन नहीं है बल्कि इसके माध्यम से क्षेत्र के निवासी अपने आराध्य देवी-देवताओं का पूरे विधि-विधान, पूजा-अर्चना के साथ अपनी धार्मिक सद्भावना प्रदर्शित करते है।
कोण्डागांव के वार्षिक मेले में जिले के आस पास के ग्रामों जैसे पलारी, भीरागांव, बनजुगानी, भेलवापदर, फरसगांव, कोपाबेड़ा, डोंगरीपारा के ग्रामीण देवी देवता, माटीपुजारी, गांयता सम्मिलित हुए। जहां आराध्य मां दन्तेश्वरी के अलावा विभिन्न समुदायो के देवी देवताओं जैसे सियान देव, चौरासी देव, बुढाराव, जरही मावली, गपा-गोसीन, देश मात्रा देवी, सेदंरी माता, दुलारदई, कुरलादई, परदेसीन, रेवागढ़ी, परमेश्वरी, राजाराव, झूलना राव, आंगा, कलार बुढ़ा, हिंगलाजीन माता, बाघा बसीन देवताओ की पूरे धार्मिक विधि-विधान ढ़ोल नगाडे माहरी, तोड़ी, मांदर एंव शंख ध्वनि के साथ भव्य पूजा अर्चना सम्पन्न की गई। आसपास के ग्रामों से आए ग्रामीणों एवं उनके देवी-देवताओं के हुजुम ने आस्था और संस्कृति के विभिन्न रंग को फीका पड़ने नही दिया और लोगों के द्वारा भीगे चावलो एवं पुष्प-पंखुड़ियो की वर्षा के साथ देवी-देवताओं की अगुवानी की गई।
इस क्रम में देवी-देवताओं को मेला स्थल पर लाये जाने के पश्चात मुख्य पुजारियो एंव सिरहाओ द्वारा नगर के प्रमुख अधिकारी एवं जन प्रतिनिधि गणो की अगुवानी की गई। सम्पूर्ण मेला स्थल की परिक्रमा भी परम्परागत दैवीय अनुष्ठान का एक प्रमुख अंग माना जाता है। इस क्रम में सर्वप्रथम ग्राम पलारी से आई हुई माता डोली एंव लाट द्वारा सर्वप्रथम पूरी भव्यता के साथ भ्रमण किया गया। तत्पश्चात उनके पीछे-पीछे अन्य ग्रामो के देवी देवताओ एंव ग्रामो की डोलियां ने उनका अनुसरण करते हुए परिक्रमा किया, इनके साथ ही छतर एंव डंगई लाट धरे हुए उनके भक्त गण भी साथ चल रहे थे। इस दौरान पांरम्परिक आस्था के प्रतीक स्वरूप इन लाटो को काले, लाल झंडियो एंव फूलो से सजाया गया था और पूरा बाजार स्थल ढ़ोल, मोहरियों, मांदर की धुन से गुंजायमान था। उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर क्षेत्र के विधायक मोहन मरकाम, सहित जन प्रतिनिधियों द्वारा पुरी आस्था और श्रद्धा के साथ ग्राम देवी देवताओं की माता गुड़ी स्थल में पूजा अर्चना करके परंपराओं का निर्वहन किया गया इसके पूर्व ग्रामीणों ने पूराने विश्राम गृह से एवं अधिकारियों को गाजेबाजे के साथ मेला स्थल में लाया गया।