कोरिया! जहां चाह वहां राह की तर्ज पर सिंचाई की सुविधा से केवल बीस डिसमिल जमीन पर सब्जी लगाकर एक आदिवासी परिवार खुषहाली की राह पर चल पड़ा है। उनकी मेहनत को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने सहारा दिया है। बैकुण्ठपुर जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्राम पंचायत कंचनपुर में रहने वाले सनोहन सिंह के पास पहले महात्मा गांधी नरेगा के अकुषल रोजगार पर आश्रित रहने की मजबूरी थी। मनरेगा के अकुषल रोजगारमूलक कार्यों में मजदूरी करने वाले सनोहर के पास अब अपने ही बाड़ी में पर्याप्त काम है। उनके परिवार को अब दूसरों के खेतों में काम करने की जरूरत नहीं पड़ती है। बीते बारिष के बाद से उनके बाड़ी में लगातार सब्जी का उत्पादन हो रहा है और उन्होने लाकडाउन के समय में भी 3 से 4 हजार रूपए की सब्जी बेचकर अपने परिवार का आसानी से भरण पोषण कर लिया था। महात्मा गांधी नरेगा के तहत बने कुंए से उनके बाड़ी में सब्जी का अच्छा उत्पादन हो रहा है।
ग्राम पंचायत कंचनपुर के रहने वाले सनोहर सिंह बतलाते हैं कि उनके पास पारिवारिक बंटवारे में कुल दो एकड़ भूमि प्राप्त हुई। जिसमें से मात्र 50 डिसमिल भूमि ही सिंचित है। पहले वह अपने खेतों में बारिष आधारित धान की खेती करते थे। पांच सदस्यों वाले इस परिवार के पास धान की खेती के अलावा कोई और खेती का साधन नहीं है। इससे इतनी आय नहीं होती थी कि उनका गुजारा अच्छी तरह से हो सके। उनके परिवार के पास आय का कोई साधन न होने से रोजगारमूलक कार्यों पर आश्रित होना पड़ता था। एैसे में उन्होने अपने घर के पास कुंए बनाने के लिए ग्राम सभा में आवेदन प्रस्तुत किया। ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर जिला पंचायत द्वारा गत वर्ष उनके निजी भूमि पर कुंए का निर्माण करने के लिए दो लाख 19 हजार रूपए से कुंआ निर्माण कार्य की प्रषासकीय स्वीकृति प्रदान की गई। कुंए का निर्माण कार्य करते समय इस परिवार को 148 कार्य दिवस का काम और 28 हजार रूपए से ज्यादा की मजदूरी राषि भी प्राप्त हुई। इस मजदूरी राषि से उन्होने अपने कुंए का पानी सिंचाई करने के लिए एक पंप भी खरीद लिया। इसके बाद बारिष में धान की खेती से खाली होने के बाद इस परिवार ने अपने बाड़ी में आलू की फसल लगाई। घर में खाने के अलावा सनोहर ने आलू बेचकर 11 हजार रूपए का मुनाफा कमाया। इसके बाद उनहोने गोभी और अन्य सब्जियां लगाकर फिर 8 हजार रूपए का लाभ लिया। फिलहाल सनोहर के बाड़ी में टमाटर की फसल तैयार हो रही है। वह बतलाते हैं कि आने वाले समय में आठ से दस क्विंटल टमाटर का उत्पादन होने की उम्मीद है। इस तरह यह परिवार अब अपने बाड़ी में सिंचाई करके आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।