निजी स्कूलों पर मेहरबान छत्तीसगढ़ सरकार, विपक्ष सियासी नौटंकी में मस्त, जनता त्रस्त
ए दिल है मुश्किल जीना यहां, ये है छत्तीसगढ़ मेरी जान…
(शिव दत्ता)
रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस कोरोना काल के बीच निजी स्कूलों के लाभ के लिए सभी स्कूलों का दरवाजा खोलने का आदेश जारी कर दिया है। गौर करने वाली बात यह है कि सभी स्कूलों का पूरा सत्र ऑनलाइन क्लासों मे गुजर गया पर अचानक एक माह पहले स्कूल खोलने का आदेश देना कहां तक सही है? साथ में बच्चों का भविष्य तो नहीं जान जोखिम में डालना कितना न्यायोचित है। खास तौर पर गौर करने वाली बात यह है कि विपक्षी पार्टियां भी मौन धारन किये हुए हैं। क्योंकि सभी स्कूलों के बीच में निजी शब्द भी जुड़ा हुआ है। इससे स्पष्ट है कि निजी स्कूलों की धाक कहां तक है, जिसके कारण सब नतमस्तक हैं। सरकार को स्कूलों की परवाह है लेकिन पलकों की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। बच्चों के भविष्य का हवाला देकर पालकों को मोटी रकम के लिए बार बार नोटिस दिया जा रहा था। रकम न होने के कारण अनेकों पालकों ने फीस माफी के लिए सरकार से गुहार भी लगाई। मात्र एक घंटे की ऑनलाइन क्लास के चलते इस आदेश के कारण बच्चों के भविष्य का हवाला देकर भय रूपी नोटिस थमाकर अब मोटी रकम वसूली जाएगी। पालकों को अब मजबूरन कर्ज लेकर स्कूलों का भुगतान भुगतना पड़ेगा। जो स्कूल बार बार पैसों के लिए रोना रो रहे थे, उन स्कूलों में सरकार के कुबेर रूपी आदेश के बाद धन की वर्षा होने लगेगी। धनाढ्य वर्ग और आरटीई (गरीबी रेखा) वर्ग के बीच में एक बड़ा वर्ग मध्यम वर्ग, जो इस कोरोना काल की मार से बेहाल हो चुका है, उसे बुरी तरिके से बेइज्जती का शिकार होना होगा।
मध्यम वर्ग के बहुत से लोग पहले कोरोना काल में नौकरियां जाने के कारण परेशान हैं। कई तो कर्ज लेकर भी परिवार का भरण पोषण किए हैं। आधी सैलरी के कारण परेशान मध्यम वर्ग पेट्रोल, डीजल की कीमतों में लगी आग के कारण त्रस्त हैं।अब ऊपर से इस नए फरमान की वजह से कर्जदार बनने भी बाध्य हो जाएंगे। इस समस्या का समाधान न कर सरकार के एकतरफ़ा फैसले से इस वर्ग के गुस्से का शिकार सरकार को ही होना पड़ सकता है। साथ ही सत्ता से सड़क पर आई भाजपा को भी यह समझना चाहिए कि फिजूल की वक्तव्य बहादुरी से कुछ नहीं होने वाला। माध्यम वर्ग के मर्म को महसूस करेंगे तो उनका भी राजनीतिक भला होगा। सरकार अगर राज धर्म नहीं निभा रही तो भाजपा को अपना प्रतिपक्ष धर्म निभाने से कौन रोक रहा है? भाजपा को सत्ता में काबिज रहते किसान की जितनी चिंता नहीं थी, उससे दस गुनी फिक्र अब हो रही है। यह सिर्फ सियासी नौटंकी ही समझी जायेगी। अगर भाजपा वाकई रचनात्मक और सक्रिय विपक्ष के रूप में साख बनाने की कोशिश करे तो उसके पुराने राजनीतिक पाप धुल सकते हैं। लेकिन वह भी उसी तरह की राजनीति कर रही है, जैसे विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस किया करती थी।