रायपुर 29 नवंबर 2020 : देश में पर्यावरण प्रदूषण एवं इसके दुष्प्रभावों से सभी भलीभांति परिचित हैं, प्राकृतिक संसाधनों को वर्षों से नज़रंदाज़ कर हम सभी ने इस समस्या को आमंत्रित किया है, आज “वर्तमान परिपेक्ष्य में भारत की पर्यावरण चुनौतियों” को गंभीरता से लेते हुए एआईपीसी राजस्थान व एआईपीसी चौपाल ने संयुक्त रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का आयोजन किया, इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कोविड के उपरांत आज तेज़ी से बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण पर गंभीरतापूर्वक चर्चा की गई। इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की शुरुआत करते हुए एआईपीसी वेस्ट ज़ोन के कोऑर्डिनेटर राजीव अरोरा ने कहा कि दुर्भाग्यवश हमारे भारत की गणना दुनिया के प्रदूषित शहरों में कई जाती है, इस प्रदूषण के लिए जितनी जिम्मेदार वनों की कटाई है उतनी ही जिम्मेदार लापरवाही भी है। देश की वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आज भारत में एक बड़े वर्ग तक पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नही है, देश की राजधानी दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में सीवेज सिस्टम अपेक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि इन मुख्य समस्याओं पर ही ध्यान केंद्रित करते हुए देश की सरकार कार्य करे तो 50% समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
इसके उपरांत लोकसभा सांसद डॉ शशि थरूर ने कहा कि कोरोना संक्रमण के उपरांत पर्यावरण प्रदूषण और भी तेज गति से बढ़ सकता है, उन्होंने कहा कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था आज जिस हालत में है उसे सुदृढ़ करने के लिए उद्योगों पर निर्भरता बढ़ेगी जिसका सीधा परिणाम हमारे पर्यावरण पर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि जल-वायु परिवर्तन का परिणाम हम अब भी आसपास देख रहे हैं, इसके उदाहरण में बेमौसम बारिश और फसलों की बर्बादी आज एक बड़ी समस्या है। डॉ थरूर ने आगे कहा कि “एक पेड़ के काटने का असर भी हमारी जीडीपी पर पड़ता है” और इस दिशा में देश को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।
उद्योगों के साथ ही व्यवहार में परिवर्तन लाकर पर्यावरण संरक्षण के प्रयास किये जा सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्री श्री टी एस सिंहदेव
स्वास्थ्य मंत्री श्री टीएस सिंहदेव ने इस विषय को संबोधित करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अभी बहुत कार्य करने की गुंजाइश है, औद्योगिक क्रांति के बाद से पर्यावरण को भारी क्षति पहुंची है जिस पर गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि केवल उद्योगों या किसानों पर प्रतिबंध लगा देना मात्र ही पर्यावरण संरक्षण नहीं है, हमें जन-जन को पर्यावरण चुनौतियां एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करना होगा। स्वास्थ्य मंत्री श्री टीएस सिंहदेव ने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन की नीतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि विश्व के एक बड़े शक्तिशाली राष्ट्र ने पर्यावरण संरक्षण को प्रमुखता से अपने कैबिनेट में शामिल किया है। वहीं दूसरी ओर हमारा भारत विश्व में ग्रीन हाउस इफेक्ट में तीसरे स्थान पर एवं कोयला उत्सर्जन में दूसरे स्थान पर है, जो चिंता का बड़ा विषय है।
उन्होंने आगे कहा कि मध्य भारत के अधिकांश उद्योग कोयला संचालित हैं जिसमें छत्तीसगढ़ के 10% उद्योग कोयले पर आधारित है एवं हमारी अर्थव्यवस्था भी इन्हीं उद्योगों पर निर्भर है, इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में स्थित रायगढ़ क्षेत्र इन उद्योगों व खदानों से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है जिसकी वजह से इस क्षेत्र से स्वास्थ संबंधी बीमारियों के सर्वाधिक केस देखे गए हैं एवं कोविड-19 के दौरान भी इस क्षेत्र के लोग सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं जो हमारे लिए प्रमुख चुनौती है लेकिन केवल इन उद्योगों एवं किसानों की पराली पर कार्यवाही करना ही पर्यावरण संरक्षण नहीं माना जा सकता बल्कि हमें जन-जन तक पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता पहुंचाने और लोगों को मानसिक रूप से तैयार करने की आवश्यकता है। जिसके साथ हम पर्यावरण को बेहतर दिशा में ले जा पाएंगे। स्वास्थ्य मंत्री श्री टीएस सिंह देव ने आदिवासी क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए कहा के प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कम होता है जिससे इन क्षेत्रों में अपशिष्ट पदार्थ कम निकलते हैं। आदिवासी क्षेत्रों की संस्कृति उन्हें पर्यावरण एवं जीव जंतुओं से जुड़े रखती है जिससे इन क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण की भावना बनी रहती है।
स्वास्थ्य मंत्री श्री टीएस सिंह देव के उपरांत महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा कि पर्यावरण संबंधी समस्याओं से अपनी पृथ्वी को संभालने हमारे पास मुख्यत: 10 वर्ष हैं, आज पर्यावरण परिवर्तन केवल ग्लेशियर वह समुद्रों तक सीमित नहीं बल्कि हमारी सड़कों और हमारे खेतों तक पहुंच चुकी है। उन्होंने आगे कहा कि पर्यावरण संरक्षण को हमें शासन की वित्त विभाग के जैसे ही अपने कैबिनेट में शामिल करना चाहिए। मंत्री श्री आदित्य ठाकरे ने आगे कहा कि हम तूफान, बेमौसम बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं को पर्यावरण परिवर्तन के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं, 80 एकड़ में फैले आरे वनक्षेत्र का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विकास केवल कंक्रीट तक सीमित नहीं बल्कि चारों और हरियाली भी विकास के अंतर्गत ही आता है हमें इस बात को गंभीरता से समझने की आवश्यकता है एवं लोगों तक इन संदेश को पहुंचाने की जरूरत है।