रायपुर, छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी की पुण्यतिथि पर उनकी वीरता और पराक्रम को नमन किया ।
डॉ महंत ने कहा कि, गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। ख़ालसा यानि ख़ालिस (शुद्ध) जो मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हो और समाज के प्रति समर्पण का भाव रखता हो. इसके माध्यम से उन्होंने देश के विकास में राजनीतिक और सांस्कृतिक योगदान के लिए युवकों को आगे आने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने कहा कि, गुरु गोविंद सिंह संत होने के साथ ही एक योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे। उन्हें मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही सिख पंथ के गुरु की मान्यता मिली। उनके पहले उनके पिता गुरु तेग बहादुर इस पंथ के गुरु थे। सिख पंथ की स्थापना गुरु नानक ने 15वीं सदी में की थी।
गुरु गोविंद सिंह जी को त्याग और वीरता की मूर्ति भी माना जाता है। गुरु जी ने एक नारा दिया था – वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह. …
“सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ”
गुरु गुरु गोविंद सिंह की वीरता और पराक्रम को ये पंक्तियां बहुत ही अच्छी तरह दर्शाती हैं।