रायपुर। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने तीन नए कृषि अध्यादेशों का विरोध करते हुए कहा कोरोना संकट में ऐसे कानूनों को लाना, किसानों की आवाज को दरकिनार करना जैसा है। उन्होंने मोदी सरकार की तीन नए कृषि अध्यादेशों का छत्तीसगढ़ के किसानों से विरोध करने का आव्हान करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार किसानों को समर्थन मूल्य के साथ बोनस भी दे रही थी जिसे मोदी सरकार रोक न सकी तो इसके खिलाफ कानून ले आई और इस साजिश में छत्तीसगढ़ भाजपा के 9 सांसदों ने भी समर्थन दे कर किसानों को धोखा दिया है।उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे इन सांसदों को अपने क्षेत्र में घुसने न दें और भाजपा का खुल कर विरोध करें।
विकास उपाध्याय ने किसान विरोधी नए तीनों अध्यादेश को असंवैधानिक करार देते हुए कहा, कृषि, राज्य सरकारों का विषय है इसलिए केंद्र सरकार को कृषि के विषय में हस्तक्षेप करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। मोदी सरकार इन अध्यादेशों के माध्यम से किसानों को मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य को बन्द करा दी है। उन्होंने इस संबंध में कई भाजपा नेताओं से उनकी बातचीत होने का हवाला देते हुए खुलासा किया कि छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार जिस तरह से किसानों के हित में एक के बाद एक निर्णय लेकर किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में लगी हुई है, उससे मोदी की केन्द्र सरकार चिंता में आ गई थी। मोदी को डर था कि भूपेश सरकार के इस मॉडल को अन्य राज्य भी कहीं अपना लिए तो आने वाले चुनावों में भाजपा का सफाया हो जाएगा और यही वजह है,की केन्द्र ने इन नए अध्यादेशों से किसानों के फसल के बिक्री में सरकार का नियंत्रण ही समाप्त कर दिया।
विकास उपाध्याय ने दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के प्रावधान पर कहा, 85 प्रतिशत छोटे किसान एक ज़िले से दूसरे ज़िले में नहीं जाते, तो किसी दूसरे राज्य में जाने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने कहा यह अध्यादेश बाज़ार के लिए बना है, न कि किसान के लिए। वैसे भी ये कोई नई बात नहीं है कि किसान अभी दूसरे राज्य या खुले बाजार में फसल नहीं बेच पा रहे थे। बेच पा रहे थे पर उनको इसका उन्हें वाबीज कीमत नहीं मिल पा रहा था इसी वजह से वो मंडियों का रुख कर रहे थे क्योंकि यहाँ उनको न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से कीमत तो मिलती ही थी साथ में बोनस भी, पर अब किसानों को एमएसपी नही मिलने के कारण, उन्हें वो कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जायेंगे।
विकास उपाध्याय का साफ कहना है कि नए क़ानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी अब पूँजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुक़सान सीधे तौर पर किसानों को होगा और इसका सबसे बड़ा नुक़सान आने वाले समय में ये होगा कि धीरे-धीरे मंडियां खत्म होने लगेंगी। मंडी व्यवस्था खत्म होने से व्यापारियों की मनमानी और बढ़ जाएगी. वो औने-पौने दाम पर किसानों की फसल खरीदेंगे, क्योंकि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं होगा।उन्होंने कहा बिल के मुताबिक इससे किसान नई तकनीक से जुड़ पाएंगे, पाँच एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को कॉन्ट्रैकर्टस से फायदा मिलेगा। जबकि वास्तविकता ये है कि इस प्रावधान से किसान “अपनी ही जमीन पर मजदूर हो जाएगा”
सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है।
इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है। लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है।
विकास उपाध्याय ने आवश्यक वस्तु संशोधन बिल पर कहा एसेंशियल एक्ट 1955 को कृषि उपज को जमा करने की अधिकतम सीमा तय करने और कालाबाजारी को रोकने के लिए बनाया गया था। नई व्यवस्था में स्टॉक लिमिट को हटा लिया गया है। इससे कालाबाज़ारी को बढ़ावा मिलेगा। विकास ने कहा ऐसा कर मोदी सरकार ने जमाख़ोरी को वैधता दे दी है, इन चीज़ों पर अब कंट्रोल नहीं रहेगा। विकास उपाध्याय ने कहा इस तरह से मोदी सरकार द्वारा लागू किया जा रहा तीनों अध्यादेश किसान विरोधी बिल है। इसका छत्तीसगढ़ में भी व्यापक विरोध होना चाहिए।