वरिष्ठ पत्रकार कुमार कौशलेंद्र की कलम से
हेमंत जी, आप विनम्र हैं, जुझारू हैं और संपूर्ण झारखंड के समग्र विकास हेतु प्रतिबद्ध हैं, इसमें कोई संदेह फिलहाल नहीं दिखाई देता. किन्तु आपसे अलीक नायकत्व की अपेक्षा पाले बैठी जनता क्या आपकी आम ढर्रे वाली छवि स्वीकार कर पायेगी?
मैं बेबाक आगे बढ़ाने से पहले वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा की एक स्मृति साझा कर रहा हूँ- 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो आपके पिता झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन पर गिरफ्तारी की तलवार मंडराने लगी थी . कांग्रेस की तत्कालीन सर्वेसर्वा इंदिरा गांधी ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था, लेकिन विप्लवी गुरु जी तो फरार थे.
उस वक्त आई.ए.एस. के.बी.सक्सेना धनबाद के डीसी हुआ करते थे. अपनी ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता के कारण ख्यातिप्राप्त सक्सेना गुरु जी की ईमानदारी और जनसमर्पण के कायल थे.
शासन का रूख भांपते हुये उन्होंने आपके पिता शिबू सोरेन को समझाया और आत्मसमर्पण करने के लिए राजी किया. 1976 में शिबू सोरेन जी ने सरेंडर कर दिया. उन्हें धनबाद जेल में रखा गया. अक्टूबर-नवंबर का वक्त था. जेल में एक महिला कैदी करुण स्वर में छठ के गीत गा रही थी.शिबू सोरेन जेल में महिला कैदी का गीत सुनकर कुछ समझ नहीं पाए. उन्होंने झारखंड आंदोलन के एक दूसरे कार्यकर्ता और जेल में बंद झगड़ू पंडित से इस बावत पूछा. झगड़ू ने उन्हें बताया कि महिला हर बार छठ करती है, लेकिन इस बार एक अपराध के जुर्म में जेल में है इसलिए वो छठ नहीं कर पा रही है, लिहाजा वो बहुत पीड़ा में छठ गीत गा रही है.
एक गैर आदिवासी महिला की पीड़ा सुन गुरु जी बेहद दुखी हुए. उन्होंने जेल में ही महिला को छठ व्रत कराने का इंतजाम किया.
समाज में अपना नेतृत्व कौशल दिखा चुके शिबू सोरेन ने जेल में भी अपनी लीडरशिप क्वालिटी दिखाई. गुरु जी ने सभी कैदियों से अपील की कि वे एक सांझ का खाना नहीं खाएंगे और उस पैसे से छठ पूजा के लिए सामान खरीदा जाएगा. आखिर हुआ भी ऐसा ही. सभी कैदियों ने एक टाइम का खाना त्याग दिया और महिला को छठ करने की व्यवस्था कर दी.
संभवतया आप भी जब बाबा के साथ बैठ उनके संघर्ष के अतीत पन्नों को पलटते होंगे तो कई और खट्टे – मीठे संस्मरण आपने भी सुने होंगे. आंदोलन के दिनों में झेली गयी परेशानी और राजनीतिक दुष्चक्र की जेल यातनाएं भी बाबा ने आपसे साझा की ही होंगी.
आपके दिवंगत् अग्रज दुर्गा दादा से सुना एक संस्मरण मैं भी साझा करता हूँ,संभवत: उनके आक्रोशावेग व्यक्तित्व की झलक आप भी इस संस्मरण में अनुभव करेंगे. आपके पिताजी तिहाड़ जेल में थे.जननेता होने के बावजूद तत्कालीन सरकार के इशारे पर उनको अमानवीय प्रताड़ना दी जाती थी. मुझे याद है कि आपके दादा की आंखों का रंग सुर्ख लाल हो जाता था राजनीतिक षड्यंत्र और तथाकथित अपनों की कारगुजारियों को साझा करते हुये.
1993 में आप बहुत हद तक राजनीतिक तिकड़म किशोर की भांति समझने ही लगे होंगे. याद होगा आपको भी कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और इसके सुप्रीमो शिबू सोरेन का नाम 1993 के सांसद रिश्वत कांड में खूब उछला था. आपके पिता शिबू सोरेन समेत झारखंड मुक्ति मोर्चा के 4 सांसदों पर आरोप लगा था कि उन्होंने तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के लिए बड़ी रकम घूस में ली थी. नतीजा क्या निकला ? गुरु जी तमाम दुश्वारियों को झेल बेदाग हुये.
शशिनाथ प्रकरण को तो आपने काफी करीब से देखा था. तमाम तिकड़म नाकाम हुये और गुरु जी बरी.अन्य और आर्थिक -सामाजिक- राजनीतिक दुश्वारियां जो आपके पिता और परिवार ने झेलीं, आप के जेहन में जीवंत ही होंगी.
क्या आपके पिता और दिशोम गुरु अपराधकर्मी थे? राजनीतिक तिकड़म के शिकार एक विप्लवी नायक को जेल में यातनाएं दी गईं और झामुमो के अंत का ऐलान भी कर दिया था राजनीतिक पंडितों ने.
क्या गुरु जी को जेल में वी.आई.पी. सुविधा मिलती थी ?जहां तक मेरी जानकारी है उन्हें सांसद होने के बावजूद संगीन अपराधी सा सलूक मिलता था. जबकि उनके सिपहसलार कहे जाने वाले नेता लालू प्रसाद जी की कृपा से झारखंड में सुपर सी.एम. की सुविधा भोग रहे थे.
बावजूद इसके आप मधु कोड़ा सरकार की राह पर चलकर चारा घोटाले में सजायफ्ता लालू प्रसाद के लिये रिम्स अधीक्षक आवास और अन्य विशेष सुविधाओं की व्यवस्था कर कौन सी परिपाटी का अनुसरण कर रहे हैं?
झारखंड सिविल सोसाइटी के तत्वावधान में गांधी प्रतिमा के समक्ष आपकी सरकार के इस निर्णय के विरोध को कैसे गैरवाजिब करार देगी आपकी न्याय प्रिय आत्मा? होटवार जेल में भी करीब सौ सजायफ्ता और विचाराधीन कैदी कोरोना पाॅजीटीव हैं उनमें से कुछ तो पूर्ववर्ती माननीय भी हैं. क्या उनके लिये भी आप जेल अधीक्षक आवास में प्रवास की सुविधा सुनिश्चित करने जा रहे हैं?
अन्यथा मत लीजियेगा मधु कोड़ा की तर्ज़ पर बेकन गेस्ट हाउस वाली परिपाटी से बचिये अन्यथा आपको नायक छवि में देखने को आतुर जनता कब आंखें फेर लेगी इसकी भनक भी नहीं लगेगी आपको.
एक जिज्ञासा के समाधान संग अंत करना चाहता हूँ कि आप अपने पिता के संघर्ष की विरासत को आगे बढाते हुये, वर्ष 2009 में बड़े भाई दुर्गा सोरेन की असमय मौत के बाद शिबू सोरेन के बाद जेएमएम के नेता के रूप में उभरे| आप 2009 के विधानसभा चुनाव में दुमका सीट से पहली बार जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे और 2010 में अर्जुन मुंडा की नेतृत्व वाली बीजेपी-जेएमएम सरकार में पहली दफा राज्य के उपमुख्यमंत्री बने| बाद में कई राजनीतिक झंझावात पार कर रविवार 29 दिसंबर 2019 को झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर आपने शपथ ग्रहण किया । 38 वर्ष की उम्र में पहली बार 13 जुलाई, 2013 को भी आपने झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला था और 23 दिसंबर, 2014 तक बने रहे उसके बाद कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर 28 दिसंबर, 2014 तक पद पर बने रहे थे।
निस्संदेह आपके जुझारू प्रयास से ही पुनः झामुमो का वर्तमान सत्ता रंग जीवंत हुआ.
हेमंत जी आपने अकेले भी झामुमो के जनसमर्थन को आजमाया है. याद होगा आपको भी जब अकेले चुनाव लड़कर 2014 में आपने अपनी झामुमो को 19 सीट दिलाई.जबकि इससे पूर्व 2009 के चुनाव में झामुमो ने सिर्फ 18 सीटें जीती थीं.
बड़े-बड़े राजनीतिक गुरु आपके नेतृत्व और झामुमो की कुल क्षमता को 19-20 बताते रह गये और आपने झारखंड में 30 नवंबर से 20 दिसंबर 2019 तक पांच चरणों में संपन्न विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाले विपक्षी झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन को 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटें जीताकर स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया. पूर्व सत्ताधारी भाजपा को भी आपकी झामुमो ने 25 सीटों पर समेट कर सियासी गणित का 19-20 बताने वाले विश्लेषकों को झामुमो की अकेले दम पर 30 सीटों का झुनझुना थमा दिया भावी समीकरण समीक्षा हेतु.
इन सबके बावजूद आपके नेतृत्व में कोरोना आपदा सूबे झारखंड में राजद सुप्रीमो के लिये विशेष सुविधा के अवसर में तब्दील हो जाये और शेष झारखंड के लोग शासन की सुविधा हेतु बाट जोहती रहे कितना न्यायोचित है?
सोचियेगा जरूर हेमंत जी, क्योंकि ये कदम आपकी छवि और जनअपेक्षा के अनुकूल नहीं दिख रही. पुनः याद दिला दूँ कि आज निर्दोष घर बैठे आपके पिताजी दिसोम गुरु तिहाड़ जेल के जेलर आवास में नहीं रखे गये थे.