गावों में बिहान के तहत समुदाय आधारित जैविक खेती का विस्तार
कृषि मित्र और पशु सखी गांव-गांव में सिखाएंगे आधुनिक खेती की तकनीक
रायपुर 01 जुलाई 2020/कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में खेती-किसानी के लिए आधुनिक जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाया जा रहा है। इस प्रणाली में वर्तमान पारिस्थितिक परिस्थितियों के साथ संतुलन के साथ उच्च गुणवत्ता का उत्पादन किया जा रहा है। सूरजपुर जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन “बिहान“ के तहत् विकासखड ओडगी के 80 गावों में महिला किसानों के द्वारा समुदाय आधारित आधुनिक संवहनीय प्रक्रिया के माध्यम से जैविक खेती की जा रही है। इसमें विस्तार करते हुए राज्य शासन द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 में ओड़गी विकासखण्ड के 10 गावों, सूरजपुर और भैयाथान विकासखण्ड के 30-30 गावों में समुदाय आधारित संवहनीय कृषि की स्वीकृति दी गयी। इससे जैविक पद्वति को बढावा मिलने के साथ महिला किसानों के कृषि कार्यों पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकेगा। इससे पानी की कमी वाले क्षेत्रों और सबसे गरीब तबके के लोगों को भी सिंचाई-आधारित कृषि को अपनाने में सहूलियत मिलेगी। इस पद्धति से आने वाली पीढ़ियों के लिये संसाधनों के आधार को खतरे में डाले बिना मौजूदा पीढ़ी की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा।
खेती-किसानी के कामकाज का संवर्धन और गावांे तक जानकारी देने के लिए “बिहान” योजना के तहत सूरजपुर और भैयाथान विकासखण्ड के प्रत्येक गांव से 1 कृषि मित्र और 1 पशु सखी का चयन किया गया है। इन कृषि मित्रों और पशु सखियों को बीजोपचार करने के विभिन्न तरीकों का प्रशिक्षण भी दिया गया है, जिससे उन्नत किस्म के बीज तैयार कर अधिक से अधिक धान की पैदावार ली जा सके। इसके साथ ही जैविक खेती में रासायनिक खाद, कीटनाशकों के स्थान पर स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर जीवामृत, घन जीवामृत, नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र जैसे जैविक खाद व कीटनाशक दवाईयों को बनाने की विधि भी सिखाई गई है। ये महिलाएं अपने-अपने गांव में जाकर 100-100 महिला किसानो को जैविक कृषि पद्धति के महत्व और प्रयोग की जानकारी देंगी। इन कृषि मित्रों और पशु सखियों को संवहनीय कृषि और जैविक पद्धति की अवधारणा समझाने के साथ मचान के माध्यम से भी खेती किये जाने की विधि का भी जीवंत प्रदर्शन दिखाया गया है।
उल्लेखनीय है कि संवहनीय कृषि खेती का ऐसा तौर-तरीका है जो स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुरूप हो। ऐसी प्रणालियों का लक्ष्य मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाए बिना गुणवत्तापूर्ण और पोषक भोजन का उत्पादन होता है। इसलिये इनमें सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों, वृद्धि नियंत्रकों और पशु चारा एडिटिव का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये प्रणालियाँ भूमि की उर्वरता और उत्पादकता बनाए रखने के लिये फसल चक्रण, फसल अपशिष्टों, पशु उर्वरकों, फलियों, हरी खादों, जैविक कचरों, समुचित मैकेनिकल खेती और खनिज वाली चट्टानों पर निर्भर रहती हैं। इससे गरीब किसानों को अपनी फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे पानी के स्रोतों के उचित दोहन के साथ ही सूक्ष्म अर्थव्यवस्थाएँ तैयार करने में मदद मिलेगी।