रायपुर, 26 जून 2020/ खरीफ मौसम में धान बुआई के लिए अपनाई जाने वाली पद्धतियांे में बियासी तथा रोपा विधि प्रमुख है। इसके अलावा एस.आर.आई.-‘श्री‘ पद्वति एवं धान की कतार बोनी भी अपनाई जाती है। खरीफ सीजन में धान की भरपूर पैदावार के लिए कृषि विकास और कृषक कल्यााण विभाग के कृषि वैज्ञानिकांे ने उपयोगी सलाह दी है।
प्रदेश में धान की अधिकांश खेती पूर्णतया वर्षा पर निर्भर है, और यही वजह है कि लगभग 75 से 80 प्रतिशत क्षेत्र में धान की खेती बियासी विधि से की जाती है। इसमें वर्षा आरंभ होने पर जुताई कर खेत में धान के बीज को छिड़क कर बीज ढकने के लिए देशी हल अथवा पाटा चलाया जाता है। जब फसल करीब 30 से 35 दिन की हो जाती है तथा खेती में 15 से 20 से.मी. पानी भर जाता है, तब खड़ी फसल में बैलचलित हल चलाकर बियासी करते हैं।
रोपण विधि के लिए धान की रोपाई वाले कुल क्षेत्र में लगभग 1/10 भाग में नर्सरी तैयार की जाती है तथा 20 से 30 दिनों की धान का थरहा होने पर खेतों को मचाकर रोपाई की जाती है। सिंचाई की निश्चित व्यवस्था अथवा ऐसे खेतों में जहां पर्याप्त वर्षा जल उपलब्ध हो, इस विधि से श्री फसल लगाई जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार धान की खेती के लिए सुनिश्चित सिंचाई के साधन उपलब्ध होने की स्थिति में धान का थरहा तैयार करने के लिए खेतों में पलेवा देकर ओल आते ही खेतों की अच्छी तरह जुताई से मिट्टी भुरभुरी कर खेत तैयार कर लें। इस प्रक्रिया से न केवल खरपतवार एवं कीट व्याधियां काफी हद तक नियंत्रित होती है, बल्कि धान का थरहा तैयार करने में सुविधा हो जाती है। इसके बाद रोपाई से पूर्व खेत की 2 से 3 बार जुताई कर मिट्टी भुरभुरी करना चाहिए। अंतिम जुताई के पूर्व 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाने की सलाह किसानों को दी गयी है। खेत की ढाल के अनुसार रोपणी में सिंचाई एवं जल निकास नालिया बनाए एवं नालियों का ढाल 0.10 प्रतिशत से 0.25 प्रतिशत तक हो, इस बात का ध्यान भी रखने को कहा गया है।