अधिकार होने का आशय यह नहीं कि प्रदेश सरकार ‘तबादला उद्योग’ चलाने लग जाए : भाजपा

कौशिक का सवाल : ऐसा कौन-सा प्रशासनिक संकट था जो तबादलों का अव्यावहारिक व अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय लिया?

रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कोरोना-संकट की इस घड़ी में भी किए गए तबादलों पर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है। श्री कौशिक ने कहा कि तबादले करना प्रदेश सरकार का अधिकार होने का आशय यह नहीं होता कि प्रदेश सरकार ‘तबादला उद्योग’ चलाने लग जाए! अधिकारियों के तबादलों की समय-सीमा की अपनी एक मर्यादा होती है, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश सरकार को जब सनक चढ़ती है, तबादलों की सूची जारी कर देती है। यह क्रम सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस की सरकार ने चला रखा है।

नेता प्रतिपक्ष श्री कौशिक ने कहा कि अभी जबकि प्रदेश में कोरोना संक्रमण अपने विस्फोटक स्वरूप में है, प्रदेश सरकार द्वारा 23 कलेक्टर्स को एकाएक एक साथ स्थानांतरित करना प्रशासनिक सूझबूझ का परिचायक तो कतई नहीं माना जा सकता। ये कलेक्टर्स अपने-अपने जिलों में कोरोना के ख़िलाफ़ जारी ज़ंग की व्यवस्था सम्हाल रहे थे, राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध सीमित संसाधनों के बावजूद कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए मेहनत कर रहे थे और उन्हें अपने जिले की तमाम व्यवस्थाओं की कमी-बेशी का पूरा ध्यान था। श्री कौशिक ने कहा कि ऐसी स्थिति में एकाएक प्रदेश सरकार द्वारा ‘एक उद्योग की शक्ल में’ 23 कलेक्टर्स को एक जिले से हटाकर दूसरे जिले में भेज देना विवेकसम्मत निर्णय नहीं है। अब ये कलेक्टर्स नए जिलों में जाकर हालात तो समझकर जब तक कोई निर्णय लेने की स्थिति में आएंगे, फैलाव पाकर कोरोना संक्रमण बेकाबू होते देर नहीं लगाएगा।

नेता प्रतिपक्ष श्री कौशिक ने कहा कि कोरोना-संकट की नज़ाक़त को ध्यान में रखकर प्रदेश सरकार को फिलहाल अपने ‘तबादला उद्योग’ को तालाबंद करके रखना था। ये तबादले कोरोना संकट से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। फिर सबसे बड़ा सवाल तो यह भी है कि आख़िर अभी ऐसा कौन-सा प्रशासनिक संकट आ खड़ा हुआ था जो प्रदेश सरकार को इतने व्यापक पैमाने पर तबादले करने का अव्यावहारिक व नितांत अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय लेना पड़ा? श्री कौशिक ने कटाक्ष किया कि प्रदेश सरकार तो कोरोना की रोकथाम के लिए कुछ कर नहीं रही है, अब अपने नौकरशाहों को भी कुछ करने से रोकने में लगी है। मुख्यमंत्री और महापौर को राजधानी के बुढ़ातालाब पर टेंट लगाकर बैठने का समय तो होता है लेकिन किसी भी एक क्वारेंटाइन सेंटर में जाकर हालचाल जानने का वक़्त उन्होंने अब तक नहीं निकाला है। इससे साफ होता है कि सरकार का ध्यान प्रदेश को कोरोनामुक्त करने में कम, और सियासी ड्रामों में ज़्यादा है।

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