महात्मा गांधी की प्रथम छत्तीसगढ़ यात्रा और छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान से प्रभावित हो रहे स्कूली बच्चे, युवा और आमजन
छत्तीसगढ़ के आजादी के दीवानों पर केन्द्रित है छायाचित्र प्रदर्शनी
रायपुर, 17 अगस्त 2022/आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर जनसंपर्क विभाग द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी में स्कूली बच्चों, युवाओं और आमजनों की भागीदारी बढ़ाने के लिए क्वीज प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के सामान्य ज्ञान पर आधारित रोचक प्रश्न पूछे जा रहे है इन प्रश्नों के सही उत्तर पर प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार भी दिए जा रहे है। गौरतलब है कि कचहरी चौक स्थित टॉऊन हॉल में आयोजित यह प्रदर्शनी 21 अगस्त तक चलेगी। इस प्रदर्शनी का अवलोकन सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक किया जा सकता है।
स्थानीय टाऊन हॉल में चल रही यह प्रदर्शनी छत्तीसगढ़ के आजादी के दीवानों पर केन्द्रित है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले रणबाकुरों के जीवन चरित्र और आंदोलन में उनके योगदान को छायाचित्रों के माध्यम से इस प्रदर्शनी में रेखांकित किया गया है। प्रदर्शनी में छत्तीसगढ़ की जन कल्याणकारी और नवाचारी योजनाओं की जानकारी भी दी जा रही है। यहां आने वाले आगंतुकों को विभिन्न योजनाओं की प्रचार सामाग्री भी वितरित की जा रही है।
प्रदर्शनी के तीसरे दिन आम नागरिकों, युवाओं के साथ ही स्वामी आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालय कुरां, धरसींवा जिला रायपुर, स्वामी आत्मानंद बी.पी. पुजारी शासकीय अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालय राजातालाब रायपुर और शहीद संजय यादव शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय संजय नगर रायपुर के बच्चों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया और इस प्रदर्शनी की सराहना की।
स्कूली बच्चों ने बताया कि उन्हें छायाचित्र प्रदर्शनी के माध्यम से छत्तीसगढ़ में देश के आजादी के लिए चलाए गए आंदोलन के संबंध में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली। विशेष रूप से किसानों के नहर सत्याग्रह आंदोलन जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। प्रदर्शनी में आयोजित की जा रही क्वीज प्रतियोगिता में आज स्कूली बच्चे भी शामिल हुए। छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता आंदोलन सहित विभिन्न विषयों पर पूछे गए प्रश्नों के सही जवाब पर स्कूली बच्चों को प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार भी दिए गए।
छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह
यह बात वर्ष 1856 की है जब छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल पड़ा था। वीर नारायण सिंह ने अपने गोदाम से अनाज लोगों को बांट दिया, लेकिन वह मदद पर्याप्त नहीं थी। जमींदार नारायण सिंह ने शिवरीनारायण के माखन नामक व्यापारी से अनाज की मांग की। उसने नारायण सिंह का आग्रह ठुकरा दिया। नारायण सिंह कुछ किसानों के साथ माखन के गोदाम पहुंचे और उस पर कब्जा कर लिया। इस बात की सूचना जब अंग्रेजों को मिली तो नारायण सिंह को गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया गया। उन्हें 24 अक्टूबर 1856 को गिरफ्तार कर रायपुर जेल में डाल दिया गया। सम्बलपुर के क्रांतिकारी सुरेन्द्र साय के नारायण सिंह से अच्छे संबंध थे। सिपाहियों की मदद से वह जेल से निकल भागने में सफल कामयाब रहे।
सोनाखान पहुंचकर नारायण सिंह ने 500 लोगों की सेना बना ली। 20 नवंबर 1857 को रायपुर के असिस्टेंट कमिश्नर लेफ्टिनेंट स्मिथ ने 4 जमींदारों व 53 दफादारों के साथ सोनाखान के लिए कूच किया। उसकी सेना ने खरौद में पड़ाव डाला और अतिरिक्त मदद के लिए बिलासपुर को संदेश भेजा। सोनाखान के करीब स्मिथ की फौज पर पहाड़ की ओर से नारायण सिंह ने हमला कर दिया। इसमें स्मिथ को भारी नुकसान पहुंचा। उसे पीछे हटना पड़ा। इस बीच स्मिथ तक कटंगी से अतिरिक्त सैन्य मदद पहुंच गई। बढ़ी ताकत के साथ उसने उस पहाड़ी को घेरना शुरू कर दिया, जिस पर नारायण सिंह मोर्चा बांधे डटे थे। दोनों ओर से दिनभर गोलीबारी होती रही। नारायण सिंह की गोलियां खत्म होने लगी। नारायण सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें रायपुर जेल में डाल दिया। मुकदमे की कार्यवाही चली और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।