वरिष्ठ पत्रकार कुमार कौशलेंद्र की कलम से
हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था…… शेष तो आप सब को पता ही होगा. बड़ी शोहरत नसीब पंक्तियाँ हैं.कई फिल्मों में नायक के मुंह से, शेरो-शायरी की महफ़िल में और नेता श्रेष्ठ के मुखारविंद से आप भी सुन ही चुके होंगे.
फिलहाल उपरोक्त पंक्तियों से बेबाक आरंभ के कारण पर आ जाता हूँ. सूबे झारखंड में पूर्व में सत्तारूढ़ रही रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और भारतीय जनता पार्टी की झारखंड इकाई में फिलहाल उपरोक्त पंक्तियों को चरितार्थ करते नेताओं की गतिविधि बढ़ गई है. शीघ्र ही सियासी हनीट्रैप की कोई नई खबर सुर्खियां बटोरने लगे तो आश्चर्य मत कीजियेगा! हनीट्रैप के साथ-साथ दोस्ताना और शुभमंगल ज्यादा सावधान जैसी फिल्म की नवीन पठकथा उजागर हो तो भी आश्चर्य मत कीजियेगा!
विनती है कि मुझे वर्तमान हेमंत सरकार के प्रशस्ति गायक के विशेषण से विभूषित करने से पूर्व पूरा बेबाक पढ़ जरूर लीजियेगा.
भूमिका हो गयी. चलिये अब आते हैं मूल मुद्दे “हनीट्रैप की सियासी क्रोनोलोजी… ” पर. देश की बात फिर कभी, फिलहाल सूबे झारखंड की बात कर लेते हैं. पिछले दिनों गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के चरित्र हनन के लिये मुंबई के मसले का मसाला बनाया. सोशल मीडिया प्लेटफार्म से होती हुई अखबारों तक में उक्त प्रकरण की सुर्खियां बनीं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के सांसद डॉ निशिकांत दुबे के बीच ट्विटर पर छिड़ी जंग कोर्ट भी पहुंच गयी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा सदस्य निशिकांत दुबे के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दर्ज करवा दिया है. मुख्यमंत्री की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और फेसबुक को भी प्रतिवादी बनाया गया है.
सूबे के अन्य मुद्दे यथा- रोजगार, विकास, सुशासन आदि नेपथ्य में और पाॅलिटीक्स की जगह ले ली माॅलिटीक्स ने. तय मानिये,थोड़े दिनों में ही लोग भूल भी जायेंगे.
ऐसे प्रकरणों पर बेबाक विवेचन से पहले झारखंड के पुराने सियासी पन्ने पलट लीजिये. मुख्यमंत्री के दिवंगत अग्रज दुर्गा सोरेन जी निशिकांत दूबे के अच्छे मित्र थे. कांग्रेस को पटखनी देने के लिए निशिकांत जी ने दुर्गा जी को लोकसभा चुनाव के अखाड़े में भी उतरवा लिया था. हाल के दिनों में भी स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी व हेमंत सोरेन की भाभी झामुमो विधायक सीता सोरेन के द्वारा अपनी ही सरकार के खिलाफ उठाये गये मुद्दों पर निशिकांत दूबे के समर्थन राग की सुर्खियां भी आपने देखी होंगी.
अब दूसरे मुद्दे पर आते हैं. फिलहाल भाजपा के बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो की भाजपा महिला नेत्री के यौनशोषण मामले में मुकदमा, भागमभाग और जेल यात्रा आदि से जुड़ी सुर्खियां याद ही होंगी.
भाजपा में पुनर्वापसी कर लौटे बाबूलाल मरांडी के तत्कालीन जेवीएम के कद्दावरों में से एक रहे ढुल्लू महतो भी थे. बाद में रघुबर दास के खेमे में भाजपाई हुये ढुल्लू महतो बाबूलाल मरांडी के निशाने पर भी आये.
फिर समय बदला और बाबूलाल मरांडी भाजपा के हो गये तो ढुल्लू महतो के घर जाकर उन्होंने यौन शोषण प्रकरण में उन्हें क्लीन चिट भी दे डाली. पूर्व में भाजपा की नेत्री रही पीड़ित महिला फिलहाल कांग्रेस में हैं.
एक और प्रकरण. बाबूलाल मरांडी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले विधायक प्रदीप यादव. ठीक चुनाव के पहले हनीट्रैप के फेर में पड़े. भागमभाग और जेल यात्रा हुई.बाबूलाल मरांडी ने पल्ला झाड़ लिया. मामला फिलहाल सुर्खियों से गायब और प्रदीप यादव सत्ताधारी सहयोगी कांग्रेस के खेमे में.
झारखंड प्रदेश भाजपा में भी फिलहाल सांगठनिक खींचतान जारी है.कई रूष्ट नेता वरिष्ठों के हनीट्रैप और दोस्ताना को सुर्खियों में भेजने को बेताब हैं.
किसी को पद नहीं पाने का मलाल है तो कोई अपनी अनदेखी से रूष्ट. कुछेक पूर्ववर्ती महारथी तो किसी नेत्री विशेष को संगठन में शामिल किये जाने को लेकर कुपित हैं.
सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखने और हटवाने के साथ-साथ सुर्खियां बनाने वाले पत्रकारों को भी साधने की कवायद जारी है.
हफ्ते-पखवाड़े में हनीट्रैप और दोस्ताना से जुड़ा कोई मामला सुर्खियां बटोर रहा हो तो चौंकियेगा नहीं. सियासी हनीट्रैप की क्रोनोलाजी यही रही है.बंदूक वही रहता है सिर्फ निशाना बदल जाता है.
हां झारखंड के परिप्रेक्ष्य में दोस्ताना और शुभ मंगल सावधान सरीखी सुर्खियों में कुछ नयापन जरूर दिखेगा.
मेरा बेबाक चिंतन ये है कि जिस देश में पिछले साल यानी 2019 में 30 हजार से ज्यादा दिहाड़ी मजदूर और 10 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जिसकी रिपोर्ट एनसीआरबी के आंकड़ों में सबके सामने है.उस देश के किसी भी सियासी दल को इससे कोई सरोकार नहीं है.
जहां 2019-20 की जीडीपी 4 के आसपास सिमट चुकी थी, जो कोरोना आपदा की पहली तिमाही में ऐतिहासिक निगेटिव आंकड़े पर जा पहुंची है, उस देश की अर्थव्यवस्था से किसी को लेना-देना नहीं है.
जहां रोजाना लाखों युवा रोजगार की मांग को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं, वहां किसी भी दल और उसके नेता को भयावह बेरोज़गारी की स्थिति में सुधार की चिंता नहीं है.
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कोरोना काल में कृषि क्षेत्र 3.4 फीसदी विकास दर के साथ आत्मनिर्भरता की प्रेरणा बनकर उभरा है, वहां इसकी सकारात्मकता को गति देने की दूरदर्शिता कोई नेता नहीं दिखा रहा.
कोरोना की मार के बीच लाखों बच्चे किस तरह मेडिकल-इंजीनियरिंग परीक्षा दे रहे हैं के साथ- साथ सूबे झारखंड की बुनियादी समस्याओं, मौजूदा दौर की चुनौतियों, जन सरोकार नेपथ्य में.
अब तो आप भी सियासी हनीट्रैप की बिसात पर राजनीतिक भविष्य तलाशते नेताओं की क्रोनोलाजी समझ ही चुके होंगे.
हेमंत जी, आप तो फिलहाल नायक की भांति सूबे की बेहतरी में दत्तचित्त रहिये. किसकी डिग्री फर्जी है और कौन कैसे सुर्खियां बटोर रहा है ,इन प्रकरणों में वक्त जाया न करें. सरकार बने 8 महीने होने को हैं और धरातल के हालात आपसे छुपे भी नहीं. हूजूर, याद रखियेगा जनसरोकार ही सरकार होती है.