रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा है कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से चंदा मिलना एक गंभीर मसला है और इससे देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दे रहे चीन के प्रति कांग्रेस के चेहरा एक बार और बेनक़ाब हो गया है। श्री साय ने पूछा कि भारत-चीन सीमा विवाद के मौज़ूदा दौर में कांग्रेस का रुख क्या इसीलिए चीन के अजीब सा है? आख़िर कांग्रेस क्यों भारतीय सेना के पराक्रम और भारतीय पक्ष के साहस व मनोबल को नकारने वाली बातें कर रही है, यह इस चंदा-प्रकरण से एकदम साफ़ हो गया है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री साय ने कहा कि इस मामले के सामने आने के बाद कांग्रेस देश को यह बताए कि उसने राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए चीन से चंदा किन शर्तों पर लिया और भारत के प्रति विश्वासघात कर शत्रुता का भाव रखने वाले चीन से चंदा लेने की उसकी ऐसी क्या विवशता थी? श्री साय ने इस खुलासे पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की कि प्रधानमंत्री सहायता कोष से भी इस फाउंडेशन को राशि दी जाती रही है? उन्होंने सवाल किया कि पीएम रिलीफ फंड से फाउंडेशन को राशि दी गई है तो इस गंभीर अपराध के लिए कौन ज़िम्मेदार है? सन 1991-92 के आम बज़ट में इस फाउंडेशन को 100 करोड़ देने की घोषणा तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने की थी जिस पर विपक्ष के तीखे विरोध के चलते अमल नहीं हो पाया था। परंतु बज़ट भाषण में यह घोषणा कांग्रेस के भ्रष्टाचार और लूटमार वाले चरित्र को रेखांकित करने को पर्याप्त है। श्री साय ने कहा कि एक और खुलासे में पता चला है कि देश के कई सरकारी उपक्रमों ने भी राजीव गाँधी फाउंडेशन में दान किया था। इनमें गृह मंत्रालय समेत 7 मंत्रालय, सरकारी विभाग से लेकर 11 बड़े सार्वजानिक उपक्रम भी शामिल थे। यह सब ‘दान’ तब किए गए जब देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संप्रग की सरकार थी और सोनिया गाँधी ही प्रमुख ‘डिसीजन मेकर’ हुआ करती थीं।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री साय ने कहा कि उरी और पुलवामा प्रकरण में कांग्रेस और वामपंथियों ने जिस तरह भारतीय सेना के पराक्रम और भारतीय नेतृत्व पर सवाल उठाए थे, सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के सबूत मांगे थे, वह केवल मुस्लिम वोटों के तुष्टिकरण का मामला भर नहीं था, बल्कि यह वैश्विक मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राजनीतिक शत्रुता भंजाने की अंधी राजनीतिक चाहत ने चीन-पाकिस्तान गठबंधन को इस्तेमाल करने की एक शर्मनाक और घोर निंदनीय कोशिश थी। यही आचरण कांग्रेस-वामपंथी मिलकर भारत-चीन विवाद में प्रस्तुत कर अनर्गल प्रलाप में जुटे हैं और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयानों को तो चीन अपने पक्ष में प्रचारित-प्रसारित तक कर रहा है। कांग्रेस मोदी-विरोध में इतनी अंधी हो गई है कि उसके एक प्रवक्ता ने तो सीमा-विवाद में चीन को क्लीन चिट तक दे दी और विवाद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी बताने में देर नहीं लगाई।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री साय ने कहा कि वैश्विक मामलों में कांग्रेस का राजनीतिक चरित्र प्राय: हर मौकों पर संदेहों का धरातल ही विकसित करने वाला रहा है। लेकिन अब ‘चौकीदार चोर’ का शोर मचाने वाले कांग्रेस नेतृत्व की तरफ ही सारी उंगलियाँ उठ रही हैं! इस चंदा-प्रकरण ने भी यह साफ कर दिया है कि भारत-चीन सीमा विवाद में कांग्रेस नेतृत्व भारत को कमज़ोर करने वाली बातें क्यों कर रहा है?
श्री साय ने कहा कि कांग्रेस के पूर्व सत्ताधीशों ने अब तक चीन के सामने घुटने टेकने का काम ही किया है, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू ने 1962 के युद्ध में भारत की हज़ारों वर्गमील ज़मीन पर चीन के अतिक्रमण को मान्यता देने का कृत्य किया तो एक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी चीन के कब्जे पर मौन लिया गया था। श्री साय ने कहा कि आज प्रधानमंत्री श्री मोदी पर निम्न सतर पर जाकर आक्षेप करने वाले कांग्रेस के नेता पहले यह तो बताएँ कि सन 2008 में भारत की कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के बीच जो एमओयू सीपीसी के तत्कालीन महासचिव शी जिनपिंग और कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव राहुल गांधी के बीच कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौज़ूदगी में हस्ताक्षरित हुआ, क्या वह संदेह के दायरे नहीं बढ़ाता? कांग्रेस के नेता एमओयू करें, चीनी राजदूत और वहाँ के राजनीतिक नेताओं से छिप-छिपकर मिलें, फाउंडेशन के लिए चंदा लें, और वामपंथियों के साथ गलबहियाँ कर भारत में प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अपमानजनक भाषा इस्तेमाल करें, यह अब नहीं चलेगा। देश ‘कांग्रेस के वामपंथी राजनीतिक चरित्र’ को अच्छी तरह देख-परख रहा है और समय आने पर कांग्रेस को इतिहास के कूड़ेदान में ही डाल देगा।